जिला न्यायालय
प्रत्येक जनपद (जिले) में निम्नलिखित प्रकार के न्यायालय होते हैं-
1. दीवानी न्यायालय
इस न्यायालय में सम्पत्ति सम्बन्धी या अन्य धन सम्बन्धी जाते हैं। जिले में इस प्रकार के न्यायालयों की व्यवस्था निम्नलिखित प्रकार से की गई है-
- जिला जज का न्यायालय- यह जिले में दीवानी का सबसे बड़ा न्यायालय होता है। इसका प्रमुख अधिकारी जिला न्यायाधीश (District Judge) होता है। यह अपने अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध 5 लाख रुपये तक की अपील व निगरानी के मुकदमों की सुनवाई करता है।
- सिविल जज का न्यायालय- यह जिला न्यायाधीश के अधीन न्यायालय होता है। यह न्यायालय एक लाख रुपये तक के मुकदमे सुन सकता है जिसे उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार आवश्यकता पड़ने पर 5 लाख तक बढ़ाया जा सकता है।
- मुन्सिफ का न्यायालय- इन न्यायालयों में 25,000 रुपये तक की सम्पत्ति के मुकदमे सुने जा सकते हैं। इनके फैसले के विरुद्ध जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की जा सकती है।
- खफीफा का न्यायालय- मुन्सिफ की अदालत के नीचे खफीफा की अदालत होती है। इन न्यायालयों में 3,000 रुपये तक के मामले सुने जा सकते हैं। इनके निर्णयों की अपील नहीं की जा सकती। इन निर्णयों पर जिला न्यायालय में पुनर्विचार हो सकता है। आवश्यक होने पर ये किरायेदार की बेदखली (मकान खाली कराने) के लिए 5,000 से 25,000 रुपये तक की वसूली के विवाद सुन सकते हैं।
- न्याय पंचायत- न्याय पंचायत को 500 रुपये तक के धन-सम्बन्धी विवादों को सुनने का अधिकार है। परन्तु 73वें संविधान संशोधन के बाद बनाए गए पंचायती राज अधिनियम में न्याय पंचायत की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
2. फौजदारी न्यायालय
उच्च न्यायालय के अधीन फौजदारी का सबसे बड़ा न्यायालय सत्र न्यायाधीश का होता है। इस न्यायाधीश को जिला जज एवं सेशन जज' दोनों ही नामों से सम्बोधित किया जाता है। जब यह फौजदारी के मुकदमे सुनता है तो 'सेशन जज' कहलाता है और जब दीवानी के मुकदमे सुनता है तो 'जिला जज' कहलाता है। यह अपने अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील भी सुनता है। सत्र न्यायाधीश के अधीन अपर सत्र न्यायाधीश, मुख्य दण्डाधिकारी (सी०जे०एम०) तथा दण्डाधिकारी (जे०एम०) होते हैं। सत्र न्यायाधीश तथा अपर सत्र न्यायाधीश को फाँसी की सजा तक देने का अधिकार प्राप्त है परन्तु उसकी पुष्टि उच्च न्यायालय से करानी पड़ती है। अपर सत्र न्यायाधीश को 10 वर्ष तक की तथा मुख्य दण्डाधिकारी को 7 वर्ष तक की सजा देने का अधिकार प्राप्त है।
3. न्याय पंचायत
फौजदारी क्षेत्र में सबसे निम्न स्तर पर न्याय पंचायतें होती हैं। न्याय पंचायतें | 250 रुपये तक जुर्माना कर सकती हैं, परन्तु वे कारावास का दण्ड नहीं दे सकतीं। 73वें संविधान संशोधन के बाद बनाए गए पंचायती राज अधिनियम में न्याय पंचायत की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
4. राजस्व न्यायालय
वर्तमान में उच्च न्यायालय के अधीन राजस्व परिषद्, कमिश्नर, जिलाधीश, परगनाधिकारी (S.D.M.), तहसीलदार और नायब तहसीलदार की अदालतें होती हैं। इन अदालतों में लगान, मालगुजारी आदि के मुकदमों की सुनवाई की जाती है।
5. अन्य न्यायालय
उपर्युक्त न्यायालयों के अतिरिक्त कुछ विशेष मुकदमों का फैसला विशेष न्यायालयों में होता है; जैसे आयकर सम्बन्धी मुकदमों का फैसला आयकर अधिकारी ही कर सकता है। उसके निर्णय के विरुद्ध आयकर आयुक्त और आयकर अधिकरण (Income Tax Tribunal) में अपील की जाती है।
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