नाइट्रोजन स्थिरीकरण
आण्विक नाइट्रोजन का नाइट्रोजन के यौगिकों, विशेषतः अमोनिया में परिवर्तन, 'नाइट्रोजन स्थिरीकरण' कहलाता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण एक अपचायक प्रक्रिया है अर्थात् यदि अपचायक परिस्थितियाँ न हो या यदि ऑक्सीजन उपस्थित हो तो नाइट्रोजन स्थिरीकरण नहीं होगी।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण दो विभिन्न विधियों द्वारा हो सकता है-
अजैवीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण
बिना किसी जीवित कोशिका के भाग लिए नाइट्रोजन का अमोनिया में अपचयन, 'अजैवीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण' कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है- औद्योगिक एवं प्राकृतिक। उदाहरण के लिए हैबर प्रक्रिया में जब नाइटोजन एवं हाइड्रोजन के मिश्रण को उच्च ताप एवं उच्च दाब पर आयरन आक्साइड उत्प्रेरक की सतह पर प्रवाहित करते हैं तो अमोनिया का संश्लेषण होता है।
यह औद्योगिक स्थिरीकरण है तथा नाइट्रोजन, अमोनिया में अपचयित हो जाती है।
प्राकृतिक प्रक्रिया में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण वातावरण में होने वाले वैद्युत् परावेशन द्वारा भी होता है। बिजली चमकने के समय वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन ऑक्सीजन के साथ मिलकर नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनाती है।
नाइट्रोजन के ये ऑक्साइड जलायोजित होकर पृथ्वी के नीचे नाइट्राइट तथा नाइट्रेट संयुक्त यौगिकों के रूप में रिस जाते हैं।
जैवीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण
रासायनिक रूप से यह प्रक्रिया अजैवीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण के समान ही है। जैवीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण में, आण्विक नाइट्रोजन का जीवित कोशिका में उपस्थित नाइट्रोजिनेज एंजाइम द्वारा अमोनिया में अपचयन होता है।
मुक्तजीवी जीवों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण तथा सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण
नाइट्रोजन स्थिरीकरण कुछ विशिष्ट जीवों द्वारा ही किया जाता है क्योंकि उनमें एक विशिष्ट एन्जाइम, नाइट्रोजिनेज पाया जाता है।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया मुख्यतः सूक्ष्मजीवी कोशिकाओं जैसे जीवाणु तथा साएनोबैक्टीरिया (नीलहरित शैवालें) में पाई जाती है। ये सूक्ष्मजीव आत्मनिर्भर तथा मुक्त रूप से रहते हैं।
कुछ मुक्तजीवी सूक्ष्मजीव जो नाइट्रोजन स्थिर करते हैं-
सूक्ष्मजीव
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स्थान
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क्लॉसट्रिडियम
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अवायवीय जीवाणु
(अप्रकाशसंश्लेषी जीवाणु)
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क्लेबिसेला (Klebsiella)
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विकल्पी जीवाणु (अप्रकाशसंश्लेषी)
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एजेटोबेक्टर
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वायवीय जीवाणु
(अप्रकाशसंश्लेषी)
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रोडोस्पायरिलम
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बैंगनी,
गन्धकहीन जीवाणु (प्रकाशसंश्लेषी)
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एनाबिना
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साएनोबैक्टीरिया
(प्रकाशसंश्लेषी)
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कुछ सूक्ष्मजीव अन्य जीवों के साथ मिलकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं। पोषी जीव निम्न कुल के पौधे अथवा उच्च पादप समूह से हो सकते हैं। पोषी जीव तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले सक्ष्म जीवों के बीच एक विशेष संबंध स्थापित हो जाता है जिसे सहजीविता कहते हैं तथा यह प्रक्रिया सहजीवी नाइटोजन स्थिरीकरण कहलाती है।
सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले कुछ जीव-
लाइकेन
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साएनोबैक्टीरिया
(नीलहरित शैवाल) एवं कवकों की विविध जातियां
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ब्रायोफाइट
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साएनोबैक्टीरिया
एवं ऐन्थोसिरोस
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टेरिडोफाइट
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साएनोबैक्टीरिया
एवं ऐजौला
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अनावृतबीजी पौधे
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साएनोबैक्टिीरिया
एवं सायकस
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एंजियोस्पर्म
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दलहनी पौधे
(लैग्यूम्स) एवं राइजोबियम
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ऐंजियोस्पर्म
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नॉन-लैग्यूमिनस एवं
एक्टिनोमाइसिटिज़ (कवक) (जैसे, एलनस, मायरिका एवं पर्सिया इत्यादि)।
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ऐंन्जियोस्पर्म
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ब्राजीलियन घास
(डिजिटेरिया), मक्का एवं एजोस्पाइरिलम
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जैवीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया
नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए आवश्यक घटक है:-
- आण्विक नाइट्रोजन
- नाइट्रोजन को अपचयित करने के लिए उच्च अपचायक क्षमता वाले अणु जैसे FAD (फ्लैविन ऐडीनीन डाइन्यूक्लियोटाइड)
- डाईनाइट्रोजन को हाइड्रोजन स्थानांतरित करने के लिए ऊर्जा स्रोत (ATP)
- नाइट्रोजिनेज एंजाइम
- बनने वाली अमोनिया को ग्रहण करने वाले यौगिक क्योंकि अमोनिया कोशिका के लिए विषैली होती है।
- अपचायक एजेंट एवं ATP प्रकाशसंश्लेषण एवं श्वसन द्वारा प्राप्त होते हैं।
संपूर्ण जैव रासायनिक क्रिया में चरणब) ढंग से नाइट्रोजन का अमोनिया में अपचयन होता है। नाइट्रोजिनेज एंजाइम मोलिब्डेिनम एवं आयरन युक्त प्रोटीन होता है तथा यह आण्विक नाइट्रोजन के बंधन स्थान पर जुड़ता है। नाइट्रोजन का यह अणु हाइड्रोजन से क्रिया करता है। (हाइड्रोजन अपचयित एन्जाइम से प्राप्त होती है) तथा चरणब) ढंग से अपचयित होता है। यह पहले डाइएमाइड (N2H2) बनाता है उसके पश्चात् हाइड्रेजाइम (N2H4) तथा अंत में अमोनिया (2NH3) बनाता हैं।
अमोनिया नाइट्रोजन स्थिरीकारकों द्वारा मुक्त नहीं होती है क्योंकि अमोनिया कोशिकाओं के लिए विषैली होती है, अत: स्थिरीकारक अमोनिया एवं कार्बनिक अम्लों को मिलाकर ऐमीनो अम्ल बना देते हैं।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण को निम्न प्रकार से सामान्य समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है।
आण्विक नाइट्रोजन बहुत ही
स्थायी अणु है अत: नाइट्रोजन को चरणब) ढंग से अमोनिया में परिवर्तित करने के लिए
कोशकीय ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा (ATP के रूप में) में आवश्यकता होती हैं।
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दलहनी पौधों (लैग्यूम्स) में, नाइट्रोजन स्थिरीकरण एक विशिष्ट भाग में होता है जिसे ग्रन्थिका (Nodule) कहते हैं। ग्रन्थिका का निर्माण राइजोवियम जीवाणु एवं लैग्यूम के बीच परस्पर प्रतिक्रिया के फलस्वरूप होता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण के जैव रासायनिक चरण समान होते हैं, यद्यपि लैग्यूम ग्रन्थिकाओं में एक विशिष्ट प्रोटीन पाया जाता है जिसे लेग्हीमोग्लोबिन कहते हैं। लेग्हीमोग्लोविन का संश्लेषण सहजीविता के कारण होता है, क्योंकि इसे अकेले जीवाणु तथा लेग्यूम नहीं बना सकते हैं। अभी हाल ही में ज्ञात हुआ है कि पोषी पौधे के अनेक जीन इसको बनाने में मदद करते है लेग्हीमोग्लोबिन के अतिरिक्त, एक प्रोटीनो का समूह का भी निर्माण होता है जिसे नोडयूलिस कहते हैं यह सहजीवी संबंध बनाने एवं ग्रंथिकाओं के कार्यों को सुचारू ढंग से कार्य करने में मदद करता है।
लैग्हीमोग्लोबिन का निर्माण
जीवाणु एवं लैग्यूम की जड़ की पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप होता है। राइजोबियम
के जीन "हीम" का कूटन करते हैं तथा लैग्यूम जड़ की कोशिकाएँ ग्लोबिन
भाग को कूटित करती है। दोनों कूटनों के उत्पाद मिलकर अंत में लेग्हीमोग्लोविन
प्रोटीन बनाते हैं।
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नाइट्रोजन स्थिरीकरण में जैवरासायनिक चरणों का सरलीकृत बहावपटलिका
लैग्हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन के आंशिक दबाव को कम करता है तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करता है। लेकिन यह गुण केवल लैग्यूमों में ही होता है क्योंकि मुक्त रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्म-जीवों में नाइट्रोजन स्थिरीकारक लैग्हीमोग्लोबिन का अभाव होता है। इसके अतिरिक्त यह साएनोबैक्टिरिया युक्त सहजीवन वाले अन्य पौधों में पाया जाता है।
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