समाचार की परिभाषा | samachar ki paribhasha

समाचार की परिभाषा

कोई भी घटना, जिसके बारे में जानने की सहज जिज्ञासा उत्पन्न होती है समाचार की श्रेणी में आती है। संचार की व्यावहारिक तथा तकनीकी भाषा में इसे ही संचार, संवाद या न्यूज़ कहते हैं। नयापन या नवीनता समाचार का आधारभूत गुण है। बहुत सी घटनाएँ हमारे आसपास सहज रूप से घटती रहती हैं जो समाचार की श्रेणी में नहीं आ पातीं, मगर जैसे ही उसमें कोई विशिष्ट तत्त्व जुड़ जाता है या वह घटना असाधारण बन जाती है वह समाचार बन जाती है। उदाहरण के लिए कोई कुत्ता किसी व्यक्ति को काट ले तो वह एक सामान्य घटना कहलाएगी, क्योंकि ऐसी घटनाएँ समाज में अक्सर सामने आती रहती हैं। मगर अगर कोई व्यक्ति किसी कुत्ते को काट ले और वह मर जाए तो उस घटना को लेकर सभी के मन में सहज ही जिज्ञासा पैदा होगी।
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इसी प्रकार एक और उदाहरण लेते हैं शादियाँ तो हर देशकाल में होती रहती हैं 23 वर्ष की दुल्हन और 27 का दूल्हा, यह सामान्य घटना कहलाएगी, क्योंकि ऐसी घटनाएँ समाज में अक्सर सामने आती है। मगर कोई 55 वर्ष का दूल्हा 8 बरस की लड़की से शादी करे और कुछ वर्ष बाद वह माँ बन जाए तो इसको लेकर सब के मन में सहज जिज्ञासा होगी।
यह तो सामान्य उदाहरण हुए। लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिनसे जुड़ी हर सूचना समाचार का रूप ले लेती है। जैसे सरकार कोई फैसला करती है. प्रधानमंत्री या किसी विभाग का कोई मंत्री सार्वजनिक रूप से या प्रेस को बला कर कोई बात करता है तो वह समाचार हो जाता है क्योंकि उसकी बातें देश की किसी समस्या या योजना से जुड़ी होती हैं।
इसी तरह बाजार के भाव या शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव या खेल के क्षेत्र में हासिल किया गया कोई कीर्तिमान समाचार की श्रेणी में आते हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हर वह घटना या विचार जो लोगों की सामान्य जिज्ञासा का विषय बनते हैं या जिनका संबंध समाज की अधिकांश जनता से जुड़ा होता है समाचार की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। इसी आधार पर अखबार या दूसरे समाचार माध्यम समाचारों का चयन करते हैं।

समाचार संकलन और संपादन

आपके सामने अक्सर ऐसी घटनाएँ आती होंगी जिनके बारे में आप सोचते होंगे कि वह कल ज़रूर अखबार और टेलीविज़न पर दिखाया जाएगा, कई बार ऐसा होता भी है मगर कई बार ऐसा नहीं होता। आप सोचते होंगे कि अखबारों ने जानबूझ कर उस घटना को नज़रअंदाज कर दिया। कई बार अखबार तक उस घटना की सूचना नहीं मिल पाने या स्थान की कमी होने के कारण दूसरी घटनाओं से उसके कम महत्त्वपूर्ण होने के कारण उस घटना का छूट जाना संभव भी है, लेकिन अगर समाचार माध्यम को लगता है कि वह घटना समाचार की श्रेणी में नहीं आती तो वह उसे जानबूझ कर छोड़ देता है।
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आपके कस्बे में फल, सब्जी, मूंगफली या इसी तरह की दूसरी चीजें बेचने वालों के सड़क के किनारे ठेले लगा कर खड़े होने की वजह से सामान्य यातायात प्रभावित होता है। उन्हें हटाने के लिए स्थानीय पुलिस अभियान छेड़ती है।
यह घटना समाचार की श्रेणी में हो सकती है, लेकिन अगर कोई अखबार इसे प्रकाशित नहीं करता तो इसके पीछे उसकी सोच यह हो सकती है कि यह तो पुलिस की जिम्मेदारी बनती है और उसने ठेले वालों को हटा कर अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। इसमें कोई नई बात नहीं है। लेकिन अगर पुलिस इस अभियान में कुछ स्थायी दुकानों में तोड़-फोड़ करती है और वहाँ के दुकानदार पुलिस के खिलाफ आंदोलन पर उतर आते हैं तो वह घटना विशेष बन जाती है। हर अखबार या समाचार माध्यम उसे समाचार बनाना चाहेगा।
इस पर प्रशासन और दुकानवालों, दोनों पक्षों की राय प्रकाशित की जा सकती है। क्योंकि वह घटना सहज ही अधिकांश लोगों की जिज्ञासा का कारण बन जाती है।
अब मान लीजिए ठेले वालों का जमावड़ा सड़क पर इसी तरह बना रहता है और उससे यातायात को परेशानी उठानी पड़ती है और कई बार शिकायत के बावजूद पुलिस या प्रशासन उन्हें वहाँ से हटाने की कोशिश नहीं करता तो यह भी समाचार बन सकता है, क्योंकि पुलिस-प्रशासन अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करता और अव्यवस्था को नज़रअंदाज करता है। ऐसे में समाचार माध्यम अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करता है। आप तो जानते ही हैं कि समाचार माध्यम कई बार ऐसे काम भी करते हैं जिसे करने से सरकार या प्रशासन कतराता है।
समाचार माध्यम आम आदमी की समस्याओं को सामने लाकर सरकार, प्रशासन या न्यायपालिका का ध्यान आकर्षित कराने की कोशिश करता है। मीडिया के इस तरह के कई प्रयासों से आम आदमी के हितों से जुड़ी समस्याओं का निदान करने की तरफ सरकार और प्रशासन मजबूर होते हैं।

समाचार संकलन

आप सोचते होंगे कि रोज़ देश भर में लाखों घटनाएँ घटती हैं और सभी समाचार माध्यम उनके बारे में सूचनाएँ देने की कोशिश करते हैं। कहीं दुर्घटना होती हैं, कहीं न्यायपालिका में किसी महत्त्वपूर्ण मसले पर फैसला आता है, कहीं सरकार और उसके विभिन्न मंत्रालय जनहित में फैसले करते हैं, एच.आई.वी. 'एड्स' जागृति शिविर लगाए जाते हैं।
कहीं विभिन्न खेल चल रहे होते हैं, कहीं बाजार भाव और शेयर बाजार का उतार-चढ़ाव होता है, कहीं शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नया होता है, दुनिया के विभिन्न देशों में कोई-न-कोई महत्त्वपूर्ण घटना है - इन सभी जगहों से समाचार जुटाना कैसे संभव हो पाता है?

समाचार प्राप्त करने के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं:-
  • संवाददाता
  • संवाददाता सम्मेलन
  • समाचार ब्यूरो
  • समाचार ऐजेंसियाँ
  • मोबाइल
  • इंटरनेट
  • ओबी वैन
आपने देखा होगा आपके इलाके में जब कोई महत्त्वपूर्ण घटना घटती है तो विभिन्न समाचार माध्यमों के संवाददाता इकट्ठे हो जाते हैं और उस घटना के बारे में विभिन्न लोगों से पूछताछ कर जानकारी जुटाते हैं। खबरें जुटाने का प्राथमिक तरीका यही होता है, लेकिन इसके अलावा भी खबरें जुटाने के कई तरीके हैं। हर अखबार या समाचार माध्यम खबरें जुटाने के लिए संवाददाताओं की नियुक्ति करता है।
इन संवाददाताओं को क्षेत्र विशेष के आधार पर काम बाँटे जाते हैं, जैसे कुछ को राजनीतिक समाचारों के संकलन की जिम्मेदारी दी जाती है तो कुछ को ड्रग्स, नशाखोरी जैसे अपराध, कुछ को खेल, कुछ को स्वास्थ्य, नारी समस्या, कुछ को बाजार भाव तो कुछ को स्थानीय समाचारों के संकलन की। इसी तरह छोटे-छोटे कस्बों, मुहल्लों के भी संवाददाता नियुक्त किए जाते हैं और कुछ विदेशों में भी। जिस क्षेत्र में समाचारों की गुंजाइश अधिक होती है, उसमें संवाददाताओं की संख्या भी उसी के अनुरूप रखी जाती है, जैसे राजनीतिक समाचारों की संभावना अधिक होती है इसलिए इस क्षेत्र के लिए संवाददाताओं की संख्या अधिक रखी जाती है।
अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों की जिम्मेदारी अलग-अलग संवाददाता को दी जाती है। कोई कांग्रेस की खबर लाता है तो कोई भाजपा की, कोई कम्युनिस्ट पार्टी या दूसरी पार्टियों की। इसी तरह सरकार की खबरें लाने के लिए भी संसद के दोनों सदनों के अलग-अलग संवाददाता रखे जाते हैं, और फिर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के लिए अलग।
आप सोचते होंगे कि ये संवाददाता दिन भर घूम-घूम कर किस तरह खबरें जुटाते होंगे। दरअसल जिस तरह समाचार माध्यमों को समाचारों की ज़रूरत होती है उसी तरह सरकार और उसके विभिन्न मंत्रालयों-विभागों को भी अपनी सूचनाएँ लोगों तक पहुँचाने की ज़रूरत होती है। लगभग हर सरकारी विभाग में एक सूचना कार्यालय होता है जिसकी जिम्मेदारी विभाग से जुड़े कार्यक्रमों और गतिविधियों की जानकारी प्रदान करना होता है। आमतौर पर संवाददाता विभाग प्रेस वार्ता भी बुलाते हैं, जिसे सामान्यतया प्रेस कॉन्फ्रेंस या संवाददाता सम्मेलन कहा जाता है।

संवाददाता सम्मेलन

समाचारों का एक और प्रमुख स्रोत है-संवाददाता सम्मेलन। संवाददाता सम्मेलनों में देशी-विदेशी अखबारों, प्रसारण संगठनों और समाचार एजेंसियों के पत्रकारों के सामने नई जानकारी दी जाती है और संचार माध्यमों के ये प्रतिनिधि अपने-अपने माध्यम के ज़रिए लोगों तक समाचार पहुंचाते हैं। संवाददाता सम्मेलनों में अखबारों के फोटोग्राफर तथा दूरदर्शन संगठनों व वीडियो कार्यक्रम बनाने वाली संस्थाओं की कैमरा टीमें भी शामिल होती हैं। संवाददाता सम्मेलन प्रधानमंत्री, अन्य मंत्रियों, सचिवों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, राजनीतिक दलों के नेताओं या प्रवक्ताओं के अलावा गैर सरकारी संस्थाओं. बैंकों, व्यापारिक संगठनों, तथा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा भी बुलाए जाते हैं। जब कोई नेता विदेश यात्रा पर जाता है तो वहाँ पहुँचने पर, यात्रा के अंत में तथा यात्रा के बाद अपने देश में पहुँच कर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करता है।
कई बार संवाददाता वैसे ही कई मौकों पर किसी नेता या महत्त्वपूर्ण व्यक्ति को घेर कर अनौपचारिक रूप से सवाल-जवाब करते हैं और उस समय की घटनाओं के बारे में उनकी राय जानने की कोशिश करते वैसे तो संवाददाता सम्मेलन आमतौर पर किसी के द्वारा अपनी तरफ से कोई बात बताने के लिए आयोजित किए जाते हैं, परंतु संवाददाता किसी भी तरह के प्रश्न पूछ सकते हैं। संवाददाता सम्मेलन का सामना करना अपने आप में एक कला है, क्योंकि पत्रकार कई बार परेशानी में डालने वाले सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब बहुत ही सूझबूझ के साथ देना पड़ता है। युद्ध, अकाल, चुनाव या किसी विशेष राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संकट के दौरान प्रायः हर रोज़ संवाददाता सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं, जिनमें ताजा स्थिति बताई जाती है। इसी प्रकार खेलों के समाचार जुटाने के लिए मैदान में लगातार उपस्थित रहना जरूरी होता है।
टेलीविज़न के कैमरे तो लगे ही रहते हैं बाकी समाचार माध्यमों के खेल संवाददाता भी वहाँ उपस्थित होते हैं। इसी तरह बाजार की स्थिति के बारे में जानकारी जुटाने के लिए लगातार बाजार पर नज़र रखनी पड़ती है। हालांकि आजकल शेयर बाजार और स्टॉक एक्सचेंज इंटरनेट के ज़रिए जुड़ चुके हैं इसलिए बाजार की पल-पल की खबरें जानना आसान हो गया है। लेकिन सरकार के फैसलों और योजनाओं की घोषणाओं की सूचना के लिए पत्रकारों को लगातार वित्त या वाणिज्य मंत्रालय के संपर्क में बने रहना पड़ता है। लेकिन कई बार सामाजिक हलचलों या घटनाओं की जानकारी तुरंत मिल पाना कठिन होता है। ऐसे में कई बार जहाँ घटना घटती है उस इलाके के लोग संवाददाता से संपर्क करके जानकारी देते हैं और वह घटनास्थल पर पहुँच कर पूरी सूचना इकट्ठी करता है। कई बार इलाके के पुलिस स्टेशन से इसकी जानकारी मिल जाती है।
कुछ समाचार ऐसे भी होते हैं, जिन्हें सरकार या विभागों के लोग जानबूझ कर छिपाने या भ्रष्टाचार से जुड़ा कोई मामला हो तो उसे अक्सर छिपाने की कोशिश की जाती है, लेकिन चूँकि समाचार माध्यम जनहित में काम करते हैं इसलिए उनका खुलासा करना उनका धर्म बनता है।
मगर ऐसे समाचार जुटाना खासा मुश्किल काम होता है। इसमें जोखिम यह होता है कि किसी भी तरह की असावधानी या गलत तथ्यों की वजह से समाचार माध्यम को बदनामी का सामना करना पड़ सकता है। जिस विभाग या व्यक्ति को लक्ष्य बनाकर समाचार लिखा गया है वह उस संवाददाता या समाचार संस्थान पर मानहानि या अपराध का मुकदमा भी दायर कर सकता है। ऐसे में सावधानी के साथ-साथ तथ्यों को जुटाने के लिए संवाददाता को पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक जासूस की तरह काम करना पड़ता है।

समाचार संकलन की तकनीक

सूचना तकनीक के विस्तार और व्यापक इस्तेमाल से आजकल सूचनाएँ और समाचार जुटाने के काम में जितनी तेजी आई है उसके मुताबिक कुछ सहूलियतें भी बढ़ी हैं। पहले दूरदराज के इलाकों से खबरें जुटाने का काम जितना कठिन था, आज उतना ही आसान हो गया है। इंडोनेशिया में आए समुद्री तूफान के समय समाचार माध्यमों में प्रकाशित-प्रसारित होने वाली खबरों पर आपने ध्यान दिया होगा तो इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
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मोबाइल फोन, इंटरनेट, ओबी वैन आदि के ज़रिए आज सूचनाओं का तुरंत प्रसारण काफी आसान हो गया है।
कोई भी पत्रकार घटना स्थल से फोन के जरिए तुरंत घटना का ब्योरा भेज सकता है या इंटरनेट के जरिए लिखित रूप में समाचार भेज सकता है, जिसे संपादकीय कार्यालय में संपादित करके तुरंत प्रकाशित कर लिया जाता है। इसी तरह टेलीविजन पर सूचनाओं का प्रसारण ओबी वैन के ज़रिए तुरंत आँखों देखा हाल जैसा प्रसारित किया जा सकता है। आप टेलीविज़न पर अक्सर देखते होंगे कि किसी भी घटना स्थल पर पहुँच कर संवाददाता घटना की स्थिति का आँखों देखा हाल तुरंत प्रस्तुत कर देते हैं। ऐसा ओबी वैन के ज़रिए ही संभव होता है।
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ओबी वैन एक तरह का चलता-फिरता प्रसारण केंद्र होता है। एक गाड़ी पर डिश एंटीना लगा कर उससे सीधे कैमरे को जोड़ दिया जाता है, जो समाचार केंद्र से उपग्रह के जरिए जुड़ा होता है। घटना स्थल के चित्रों को इस गाड़ी के जरिए सीधे समाचार केंद्र तक भेज दिया जाता है और वहाँ से सीधा प्रसारण कर दिया जाता है। इस तरह पहले जो समाचार संकलित कर समाचार केंद्र तक लाने और फिर उसे संपादित कर प्रसारित
करने में काफी समय लग जाता था वह अब बच जाता है। अब संवाददाता ही काफी हद तक समाचारों का संपादन कर लेता है।
मगर बहुत सी खबरें ऐसी होती हैं, जिनके संकलन के लिए समाचार माध्यमों को खुद घटना स्थल पर जाने की ज़रूरत नहीं होती। कुछ सूचनाएँ समाचार कार्यालय तक नियमित रूप से पहुँचती रहती हैं। ये खबरें ज़्यादातर समाचार एजेंसियाँ भेजती हैं या विभिन्न विभागों, सामाजिक संस्थानों या नागरिक संगठनों दवारा विज्ञप्ति के रूप में फैक्स, ई-मेल के जरिए भेजी जाती हैं।
इसके लिए समाचार माध्यम अलग-अलग शहरों और स्थानों पर अपने समाचार ब्यूरो स्थापित करता है और टेलीप्रिंटर, इंटरनेट, फैक्स जैसे तकनीकी संसाधनों का इस्तेमाल करता है। समाचार संकलन के तकनीकी पक्षों और विभिन्न समाचार एजेंसियों के ज़रिए किस तरह समाचार जुटाए जाते हैं, इसकी जानकारी हम आगे विस्तार से प्राप्त करेंगे।

समाचार ब्यूरो

समाचार ब्यूरो एक प्रकार से समाचार संकलन केंद्र की तरह काम करता है। चूंकि समाचार माध्यम के मुख्य कार्यालय में बैठे रह कर हर शहर या प्रमुख राजनीतिक, व्यावसायिक केंद्रों की गतिविधियों की जानकारी जुटा पाना आसान नहीं होता इसलिए इन स्थानों पर समाचार ब्यूरो स्थापित किए जाते हैं उदाहरण के लिए अगर कोई अखबार दिल्ली से निकलता है तो उसके लिए बिहार के भागलपुर या मुंबई के किसी मुहल्ले की खबरें जुटा पाना बहुत आसान नहीं होगा, जब तक कि उसके संवाददाता वहाँ उपस्थित न हों।
अगर वहाँ की खबरें देर-सवेर मिल भी जाएँ तो घटना की वास्तविक जानकारी या उसकी सच्चाई को लेकर आशंका बनी रहेगी। इस तरह की खबरों में विश्वसनीयता का खतरा बना रहेगा। इसलिए हर समाचार माध्यम अपने संवाददाताओं के जरिए प्राप्त खबरों पर ही ज्यादा भरोसा करते हैं। ऐसे में समाचार ब्यूरो स्थापित करना बहुत ज़रूरी हो जाता है।
समाचार ब्यूरो में संवाददाताओं की नियुक्ति होती है, जो अपने-अपने क्षेत्र के मुताबिक समाचारों का संकलन करते हैं और इंटरनेट या समाचार माध्यम के नेटवर्क के जरिए समाचार केंद्र के मुख्यालय तक भेज देते हैं। कई अखबारों के स्थानीय संस्करण भी प्रकाशित होते हैं। जो अखबार ऐसा करते हैं उनका स्थानीय कार्यालय ही एक तरह से ब्यूरो का काम करता है। उसके संवाददाता जो खबरें लेकर आते हैं उनका प्रयोग स्थानीय स्तर पर तो होता ही है, राष्ट्रीय संस्करण के लिए भी कर लिया जाता है।
हालांकि देश के हर शहर में ब्यूरो खोलना किसी भी समाचार माध्यम के लिए काफी खर्चीला काम हो सकता है इसलिए ये मुख्य रूप से बड़े शहरों, राज्यों की राजधानियों में खोले जाते हैं बाकी जिला या ब्लॉक स्तर की सूचनाएँ जुटाने के लिए स्ट्रिगर रखे जाते हैं। स्ट्रिगर अपने आसपास की जो खबरें भेजते हैं उस आधार पर उन्हें भुगतान किया जाता है। इस तरह समाचार माध्यम का कार्यालय खोलने, तकनीकी सुविधाएँ प्रदान कराने और उनमें नियुक्त कर्मचारियों के वेतन का खर्च काफी कम हो जाता है।

समाचार एजेंसियाँ

समाचार एजेंसियाँ समाचार माध्यमों को समाचार बेचने का काम करती हैं। चूंकि किसी भी समाचार माध्यम के लिए हर स्थान पर अपने संवाददाता नियुक्त करना संभव नहीं होता इसलिए वे बहुत सारी खबरों के लिए समाचार एजेंसियों पर निर्भर करते हैं। समाचार एजेंसियाँ भी विभिन्न शहरों, स्थानों पर अपने संवाददाताओं की नियुक्ति उसी प्रकार करती हैं जैसे कोई समाचार माध्यम करता है। इनके संवाददाता भी समाचार मा यमों के संवाददाताओं की तरह ही खबरें जुटाने का काम करते हैं। चूँकि एजेंसियाँ खबरें बेचती हैं इसलिए वे विभिन्न क्षेत्रों के समाचार पूरे तथ्यों और पूर्ण ब्योरे के साथ जुटाने की कोशिश करती हैं। उनकी खबरों में विश्वसनीयता होती है।
समाचारों के अलावा ये एजेंसियाँ फोटो और फीचर भी तैयार करती हैं और समाचार माध्यम इन्हें भुगतान करके खरीदते हैं।
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भारत में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पी.टी.आई.) और यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यू.एन. आई.) प्रमुख समाचार एजेंसियाँ हैं। पी.टी.आई. की हिंदी समाचार एजेंसी का नाम भाषा' और यू.एन.आई. की हिंदी सेवा का नाम यूनीवार्ता' है। इसके अलावा एसोसिएटेड प्रेस (ए.पी.) और एफ.पी. जैसी कई विदेशी समाचार एजेंसियाँ भी हैं। समाचार संस्थानों या माध्यमों को इन एजेंसियों से समाचार खरीदना इसलिए सस्ता और सुविधाजनक होता है कि उनके लिए देश या दुनिया के सभी स्थानों पर अपने संवाददाता नियुक्त करना या समाचार ब्यूरो गठित करना आसान नहीं होता। ऐसे में समाचार एजेंसियों से समाचार खरीद कर वे अपना ज्यादातर काम चलाती हैं। कई छोटे अखबार या पत्रिकाओं के लिए इनकी मदद से समाचारों के प्रकाशन में आसानी रहती है। लगभग सभी समाचार माध्यम अपने समाचार संसाधनों के अलावा समाचार एजेंसियों की मदद पर आश्रित होते हैं। इन एजेंसियों से समाचार खरीदने के आमतौर पर दो तरीके होते हैं।
पहला तो यह कि मासिक भुगतान पर इनसे सभी समाचार और फोटो खरीदे जाएँ। दूसरे, कुछ खास या ज़रूरत के समाचारों या फोटो को निर्धारित भुगतान करके समाचार खरीदे जाएँ। जो नियमित प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र या टेलीविज़न चैनल हैं वे मुख्य रूप से मासिक भुगतान पर खबरें खरीदना ज्यादा उचित समझते हैं। भुगतान पर सदस्यता प्राप्त करने वाले माध्यमों को समाचार एजेंसियाँ टेलीप्रिंटर या इंटरनेट के जरिए समाचार और फोटोग्राफ भेजती हैं। आपने देखा होगा कि अखबारों के समाचारों और फोटो के साथ उन्हें जारी करने वाली एजेंसियों के नाम भी लिखे होते हैं। कई बार समाचार पत्र एजेंसियों के साथ अपने संवाददाता की लाई खबरों को जोड़ कर प्रस्तुत करते हैं। ऐसे में वे समाचार के साथ लिखते हैं कि हमारे संवाददाता और एजेंसियाँ क्योंकि जो अखबार कई एजेंसियों से समाचार खरीदते हैं वे उन सभी की खबरों को मिला कर एक परिपूर्ण खबर बनाते हैं।

सूचना कार्यालय
संचार माध्यमों को अन्य कई स्थानों तथा सूत्रों से अपने आप भी समाचार मिलते रहते हैं। इनमें मुख्य हैं-सरकारी मंत्रालयों और विभागों के समाचार जारी करने वाले सूचना कार्यालय। दिल्ली में केंद्र सरकार का पत्र सूचना कार्यालय तथा राज्यों की राजधानियों में राज्य सरकारों के सूचना निदेशालय या कार्यालय प्रतिदिन आम जनता के हित की जानकारी या सरकारी नीतियों व कार्यक्रमों से संबंधित सूचनाएँ जारी करते हैं, जो अखबारों तथा संचार माध्यमों में पहुँचाई जाती है। इसके अलावा राजनीतिक दल, विश्वविद्यालय, सार्वजनिक प्रतिष्ठान, औद्योगिक तथा व्यापारिक संगठन अपने-अपने काम के बारे में जानकारी देने के लिए प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी करते हैं, जो समाचार का रूप ले लेती हैं।

विदेशी प्रसारण संगठन
आपने बी.बी.सी. का नाम अक्सर सुना होगा। बी.बी.सी. लंदन की रेडियो प्रसारण संस्था है, जिसके समाचार विश्व के लगभग सभी देशों में सुने जाते हैं। इसी तरह अन्य देश भी विदेशों के लिए समाचार प्रसारित करते हैं। हमारे देश से भी पश्चिमी देशों, एशिया, अफ्रीका आदि के लिए अंग्रेजी, हिंदी तथा उन देशों की भाषाओं में समाचार, वार्ताएँ आदि प्रसारित की जाती हैं। इन विदेशी प्रसारणों को यहाँ सुनकर (जिसे मॉनिटरिंग कहते हैं) उनका इस्तेमाल किया जाता है। रेडियो आस्ट्रेलिया से सुने गए समाचार के आधार पर ही आकाशवाणी आस्ट्रेलिया का समाचार आप तक पहुँचा देती हैं। हाँ, इनकी सच्चाई का पता लगाने में सावधानी अवश्य बरतनी पड़ती हैं। आकशवाणी में इन सभी विदेशी प्रसारणों को सुनकर समाचार ग्रहण करने के लिए अलग से मॉनिटरिंग विभाग काम करता है। पड़ोसी देशों के समाचारों तथा अन्य कार्यक्रमों की व्यापक रूप से मॉनिटरिंग होती है।

संसद और विधानमंडल
आप जानते होंगे कि संसद देश की सबसे बड़ी और सबसे प्रधान संस्था है, जिसमें हमारे चुने हुए प्रतिनिधि कानून बनाते हैं और देश के भले-बुरे पर विचार करते हैं। लोकसभा और राज्यसभा में विभिन्न मसलों पर विचार होता है, तथा सरकार और विपक्ष के बीच बहस होती है तथा सब तरह की नीतियाँ तैयार की जाती हैं, सदन की बैठक का पहला एक घंटा प्रश्नकाल कहलाता है, जिसमें सदस्य सरकार से तरह-तरह के प्रश्न पूछते हैं। मंत्री उन सवालों के उत्तर देते हैं। ये प्रश्न मौखिक व लिखित दोनों प्रकार के होते हैं। ये उत्तर भी संचार माध्यमों में समाचार के रूप में इस्तेमाल होते हैं, क्योंकि इनमें देश की प्रगति की तस्वीर सामने आती है।
इसी तरह राज्यों की विधान सभाओं और विधान परिषद की कार्यवाही के आधार पर भी समाचार तैयार किए जाते हैं। इन सदनों में पत्रकारों के बैठने का विशेष स्थान होता है, जिसे 'पत्रकार दीर्घा' या 'प्रेस गैलरी' कहते हैं। ये पत्रकार संसद और विधान सभाओं की कार्यवाही के समाचार तत्काल अपने-अपने संचार माध्यमों को गेजते रहते हैं। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से संसद की कार्यवाही के बारे में अलग से समाचार भी प्रसारित होते हैं। अब संसद के विभिन्न सत्रों का दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण किया जाता है।

समाचार संपादन

समाचारों का संकलन करने के बाद प्रायः एजेंसियों से प्राप्त होने वाली खबरों को मिला कर संवाददाता समाचार तैयार करते हैं। इसके बाद उन समाचारों को समाचार संपादक के पास भेजा जाता है। वे उपसंपादकों की मदद से समाचारों की भाषा और तथ्यों का संपादन करते हैं। साथ ही वे यह भी निर्धारित करते हैं कि कौन सी खबर किस महत्त्व की है, उसके अनुसार उसे स्थान प्रदान करते हैं। खबरों के शीर्षक और उपशीर्षक लगाते हैं।
अगर समाचार अति महत्त्व का है तो उसमें उसके विविध पहलुओं से संबंधित बॉक्स भी लगाया जाता है। हालांकि अब कंप्यूटर में प्रकाशन और पेज बनाने से संबंधित कई सुविधाएँ उपलब्ध हैं इसलिए संपादन और पेज मेकिंग में काफी आसानी हो गई है। पहले समाचारों को जुटाने के बाद उन्हें कंपोज कराना फिर स्थान के अनुसार काटना और चिपका कर पेज तैयार करना कठिन होता था। फोटो लगाने के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ती थी। अब कंप्यूटर पर कंपोज करके आसानी से पेज बनाया जा सकता है।
पहले पेज बनाना कठिन काम होता था। चिमटी से एक-एक अक्षर उठा कर सजाया जाता था। फोटो छापने के लिए भट्ठी में लोहे को गला कर उसका ब्लॉक तैयार किया जाता था। फिर उसे सेट किया जाता था। पेज में किसी भी प्रकार का बदलाव कठिन होता था। उसके बाद जब कंप्यूटर आया तो उस पर कंपोज करके उसका प्रिंट निकाल कर बटर पेपर पर खबरों को आकार में काट कर पेज पर चिपकाया जाने लगा और फिर उसकी प्लेट बनाई जाती थी। अब इन परेशानियों से काफी हद तक मुक्ति मिल गई है। अंग्रेजी में तो प्रूफ पढ़ने का झंझट भी खत्म हो गया है। कंप्यूटर गलत शब्दों को अपने आप रेखांकित करता चलता है, जिसे खुद ही तत्काल सुधार लिया जाता है। स्पेल चेकर (वर्तनी जाँचक) की सुविधा भी अब उपलब्ध है हालांकि हिंदी में भी अब कई सॉफ्टवेयर ऐसे तैयार कर लिए गए हैं जो अंग्रेजी की तरह गलत शब्दों को रेखांकित करते चलते हैं. लेकिन चूँकि हिंदी में अलग-अलग संस्थान अलग-अलग वर्तनियाँ इस्तेमाल करते हैं इसलिए यह सुविधा अंतिम रूप से प्रभावी नहीं हो पाई है। हाँ इतनी सुविधा ज़रूर हो गई है कि अब समाचारों को कंप्यूटर पर सीधा कंपोज करके उसे पेज पर सेट करना आसान हो गया है। अब अलग-अलग खबरों के प्रिंट निकाल कर उन्हें चिपकाने का झंझट नहीं रह गया है। पेज मेकर सीधे खबरों को पेज पर सेट कर देता है और जहाँ फोटो की ज़रूरत है उसे लगा देता है। खबरों को काटना या छोटा बड़ा करना भी अब पल भर में किया जा सकता है। इस तरह अब पेज बनाना मुश्किल से आधे-एक घंटे का काम होता है।
खबरें जुटाना, उन्हें तैयार करना और संपादित करके अंतिम रूप देने में ज्यादा वक्त लगता है अपेक्षाकृत पेज बनाने के। अब तो कंप्यूटरों की सुविधा हो जाने से न सिर्फ पेज बनाने में सुविधा हो गई है. पहले की अपेक्षा काफी आकर्षक तरीके से साफ-सुथरा पेज बनाना संभव हो गया है बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर खबरों को भेजना और पूरे के पूरे पेज को भेजना आसान हो गया है। पहले यह सुविधा नहीं थी। अब तो कई अखबारों के पेज दिल्ली में तैयार होते हैं और देश के दूसरे शहरों में भी जस के तस भेज दिए जाते हैं।
इस तरह पूरे देश में एक ही तरह की साज सज्जा के साथ अखबार देखे-पढ़े जा सकते हैं। खास कर हर अखबार अपने संपादकीय पृष्ठ इसी तरह प्रकाशित करते हैं। यही नहीं कई अखबार तो अब तैयार कहीं और होते हैं और प्रकाशित कहीं और होते हैं। अंग्रेजी अखबार हिंदू ने पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया। वह चेन्नई में तैयार किया जाता था और उसका दिल्ली के आस-पास बिकने वाला संस्करण हरियाणा के गुड़गाँव में छपता था। अब इस तकनीक का इस्तेमाल लगभग सभी बड़े अखबार करने लगे हैं। पेज एक जगह तैयार होते हैं और दूसरी जगह से प्रकाशित होते हैं। हिंदुस्तान टाइम्स दिल्ली में तैयार होता है और गुड़गाँव या नोएडा के प्रेस में छपता है। इस तरह समय की काफी बचत होती है।
अब अखबार छापने वाली इतनी आधुनिक मशीनें बन गई हैं कि वे प्लेट की बजाय कंप्यूटर पर तैयार पेज को सीधा लेकर छाप सकती हैं। अब घंटे भर में हजारों अखबार पूरी तरह छाप कर तैयार कर लिए जाते हैं। ये मशीनें कई पेज एक साथ छापती हैं, उन्हें पढ़े जाने की स्थिति में काट और मोड़ कर तैयार करती हैं और साथ ही गिनती करके बंडल तैयार करती चलती हैं। इस तरह उन बंडलों को सीधे ट्रकों पर लाद कर बाजार में पहुँचाया जाता है।
जिन अखबारों की लाखों प्रतियाँ छपती हैं और कई संस्करण प्रकाशित होते हैं उनमें इन मशीनों का बहुत बड़ा योगदान होता है। अब डेढ़-दो घंटे में लाखों अखबार छाप कर तैयार कर लिए जाते हैं। पहले ऐसा संभव नहीं था। सुविधाजनक मशीनों के आ जाने का लाभ यह हुआ है कि समाचार माध्यमों को समाचारों की गुणवत्ता निखारने और अधिक-से-अधिक समाचार जुटाने और प्रस्तुत करने के लिए काफी वक्त मिल गया है।
इन तकनीकी संसाधनों से सिर्फ अखबारों या पत्रिकाओं को नहीं, टेलीविज़न चैनलों को भी काफी सुविधा हो गई है। कंप्यूटर आधारित तकनीक और उपग्रह माध्यम से सूचना केंद्रों के जुड़ जाने से जहाँ समाचारों का त्वरित प्रसारण संभव हुआ है वहीं समाचारों, चित्रों के संपादन में भी सहूलियत हुई है।
यही वजह है कि आज टेलीविज़न चैनल चौबीसों घंटे समाचारों का प्रसारण कर पाने में सक्षम हो पाए हैं। अब बिहार के किसी गाँव में या पांडिचेरी के किसी द्वीप पर समाचार जुटाने गए संवाददाता से तुरंत संपर्क किया जा सकता है और उसकी भेजी खबरों को तुरंत प्रसारित किया जा सकता है। यह मोबाइल फोन या ओबी वैन के ज़रिए काफी हद तक संभव हो पाया है।

आपने क्या सीखा
  • जन साधारण की रुचि और जिज्ञासा से जुड़ी किसी भी घटना को समाचार की श्रेणी में रखा जा सकता है।
  • समाचारों के चुनाव में जनता की रुचि और जिज्ञासा का ध्यान रखते हुए उनके महत्त्व के आधार पर उन्हें प्रकाशित या प्रसारित किया जाता है।
  • समाचारों के संकलन में आधुनिक तकनीकों जैसे मोबाइल फोन, कंप्यूटर और ओबी वैन आदि के आ जाने से काफी तेजी आई है।
  • समाचारों के संकलन में संवाददाता, समाचार एजेंसियों नागरिक संगठनों और सरकारी विभागों की तरफ से जारी विज्ञप्तियों को आधार बनाया जाता है।
  • संचार माध्यमों में समाचार एकत्र करने के अनेक स्रोत हैं, जिनमें संवाददाता, संवाददाता सम्मेलन, समाचार एजेंसियाँ, सूचना कार्यालय तथा संसद और विधानमंडल प्रमुख हैं।
  • समाचार ब्यूरो प्रायः विभिन्न महत्त्वपूर्ण शहरों और प्रदेशों की राजधानियों में अपने कार्यालय स्थापित करते हैं, जहाँ उनके संवाददाता नियुक्त होते हैं।
  • समाचार एजेंसियाँ भी अपने संवाददाताओं के माध्यम से समाचारों का संकलन करती और समाचार माध्यमों को बेचती हैं।
  • समाचारों के चयन और संपादन में समाचार संपादक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वह संवाददाता की भेजी खबर की भाषा और तथ्यों का संपादन, संशोधन कर उसके शीर्षक लगाता है और उसके महत्त्व के अनुरूप स्थान देता है।
  • कंप्यूटर और अखबार छापने वाली आधुनिक मशीनों के आ जाने से जहाँ अखबारों के प्रकाशन में आसानी हुई है वहीं ओबी वैन के प्रचलन से टेलीविज़न चैनलों को खबरों के तुरंत प्रसारण में काफी सुविधा हुई है।

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