लोकतंत्र को परिभाषित कीजिये?
भारत को विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। भारत लोकतंत्र है क्योंकि यहां पर शासन के विभिन्न स्तरों के लिये निश्चित समय में चुनाव होते हैं। पिछले लगभग साठ वर्षों से जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर पर गठित सरकारे हमारे लोकतंत्र को मजबूत कर रही हैं। "लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिये शासन है" यह शासन की वह प्रणाली है जो जनता के प्रतिनिधियों द्वारा संचालित होती है।
लोकतंत्र एक शासन व्यवस्था मात्र नहीं है बल्कि यह इससे कई अधिक मायने रखता है। यह सरकार की एक व्यवस्था होने के साथ-साथ एक विशिष्ट प्रकार की राज्य व्यवस्था है, एक सामाजिक प्रणाली है तथा एक विशिष्ट आर्थिक व्यवस्था भी है।
लोकतंत्र के लिये आवश्यक परिस्थितियां
एक लोकतंत्र प्रमाणिक और व्यापक तब कहलाता है जब वह कुछ विशेष शर्तों को पूरा करता है:-
राजनीतिक परिस्थितियां
- (क) सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित होना
- (ख) मौलिक अधिकारों का प्रावधान
- (ग) सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार
- (घ) स्वतंत्र प्रेस व मीडिया
- (ङ) सक्रिय राजनीतिक सहभागिता
सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियां
- (क) विधि/कानून के समक्ष समानता
- (ख) अवसरों की समानता
- (ग) सामाजिक सुरक्षा
- (घ) सर्वशिक्षा, सर्व स्वास्थ्य जैसे प्रावधान
लोकतंत्र की विशेषताएँ
हमने इस सरल परिभाषा के साथ शुरुआत की है कि लोकतंत्र शासन का एक रूप है जिसमें जनता शासकों का चुनाव करती है। इससे अनेक सवाल उठ खड़े होते हैं: -
इस परिभाषा के अनुसार शासक कौन हैं? किसी सरकार को लोकतांत्रिक कहे जाने के लिए उसके किन अधिकारियों का चुना हुआ होना आवश्यक है। लोकतंत्र में वे कौन-से फ़ैसले हैं जो बिना चुने हुए अधिकारी भी ले सकते हैं?
किस तरह के चुनाव को लोकतांत्रिक चुनाव कहते हैं? किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहने के लिए किन शर्तों को पूरा किया जाना ज़रूरी है?
कौन लोग शासकों का चुनाव कर सकते हैं। या खुद शासक चुने जा सकते हैं? क्या इसमें प्रत्येक नागरिक का बराबरी की हैसियत से भाग लेना ज़रूरी है? क्या कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था अपने कुछ नागरिकों को इस अधिकार से वंचित कर सकती है?
सरकार के किस स्वरूप को लोकतांत्रिक कहेंगे? क्या चुने हुए शासक लोकतंत्र में अपनी मर्जी से सब कुछ कर सकते हैं या लोकतांत्रिक सरकार के लिए कुछ लक्ष्मणरेखाओं में बंधकर काम करना ज़रूरी है? क्या लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को नागरिकों के कुछ अधिकारों का आदर करना चाहिए?
लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां
भारत के लोकतंत्र के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौतियां निम्न हैं:
निरक्षरता
साक्षरता लोकतंत्र की सफलता के लिये आवश्यक है लेकिन निरक्षरता को मिटाना भारत के लिये अभी भी एक बड़ी चुनौती है।
गरीबी
बढ़ती जनसंख्या व बेरोजगारी गरीबी का मूल कारण है यह असमानता तथा वंचन को बढ़ावा देती है।
लैंगिक भेदभाव
भारत में लड़कियों व स्त्रियों के विरूद्ध भेदभाव जीवन के हर क्षेत्र में नजर आता है। यह लोकतांत्रिक सिद्धान्तों के खिलाफ है। इस तरह के भेदभाव के कारण लिंग अनुपात चिन्ता का विषय बना हुआ है।
जातिवाद व साम्प्रदायिकता
भारत का लोकतंत्र जातिवाद व साम्प्रदायिकता के कारण पैदा हुई समस्याओं से जूझ रहा है। राजनीतिक व्यक्ति मत प्राप्त करने के लिये इन दोनों को बढ़ावा देते हैं। जातिवाद और साम्प्रदायिकता देश की एकता व शान्ति के लिये खतरा हैं।
क्षेत्रवाद
विकास में असंतुलन तथा किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को विकास में नजरंदाज करने के कारण क्षेत्रवाद की भावना पैदा होती है। क्षेत्रवाद भी देश की एकता के लिये खतरा है।
भ्रष्टाचार
बेईमानी, रिश्वतखोरी तथा सरकारी तंत्र का अपने निजी हित के लिये दुरूपयोग भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। भ्रष्टाचार के कारण राजनीति और अधिकारी राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करते हैं।
लोकतंत्र में नागरिक की भूमिका
लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब नागरिक अपने आप में समानता, स्वतंत्रता, पंथनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, उत्तरदायित्व तथा सभी का सम्मान करना; जैसे कुछ मूल्यों को आत्मसात् करते हैं। लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक इस बात के लिये उत्तरदायी है। कि विभिन्न स्तरों पर सरकार कैसे कार्य करती है। इसलिये प्रत्येक नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। लोकतंत्र में नागरिक को निम्नलिखित कुछ प्रमुख अवसर प्राप्त हैं:
सार्वजनिक जीवन में भागीदारी विशेषकर चुनाव के दौरान मतदान करके नागरिक ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को उत्तरदायी व जबावदेह बनाते हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 नागरिकों को सार्वजनिक विषयों के प्रति जागरूक रहने का मौका देता है तथा अपने विचारों व राय को भी व्यक्त करने का मौका देता है।
प्रत्येक नागरिक को कुछ कार्यों को करने की छूट है साथ ही उसका कर्त्तव्य है कि वह ऐसा कुछ न करे जिनसे किसी और के अधिकारों का उल्लंघन हो।
सुधारात्मक कदम
- सार्वभौमिक साक्षरता (सर्वशिक्षा)
- गरीबी उन्मूलन
- लैंगिक भेदभाव की समाप्ति
- क्षेत्रीय असंतुलन दूर करना
- प्रशासनिक व न्यायिक सुधार
- सतत् पोषणीय विकास (आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय)
सुधारात्मक कदमों को वास्तविक रूप देने में नागरिक की भूमिका
- यह उन नागरिकों की सक्रिय भूमिका से संभव है जो -
- कानून का सम्मान कर हिंसा को अस्वीकार करते हैं
- दूसरों के अधिकारों का सम्मान करते हैं।
- मनुष्य के मान-सम्मान का आदर करते हैं।
- विपक्ष की भूमिका को स्वीकारते है।
- सरकार के निर्णयों को अस्वीकार कर सकते हैं पर सरकार की सत्ता को अस्वीकार नहीं करते
- सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करते हैं।
एक टिप्पणी भेजें