प्रावधान - प्रावधान क्या है?, अर्थ एवं आवश्यकता pravdhan kya hota hai

प्रावधान : अर्थ एवं आवश्यकता

आप जानते हैं कि हम अपने दैनिक जीवन में भविष्य की संभावित आवश्यकताओं के लिए विभिन्न व्यवस्थाएँ करते हैं। उदाहरण के लिए, माना कि आपके पिता आपको उच्च शिक्षा दिलाना चाहते हैं जैसे कि इंजिनियरिंग, डाक्टोरेट अथवा अन्य कोई पेशागत पाठ्यक्रम, इसके लिए उन्हें काफी धन की आवश्यकता होगी। अब प्रश्न पैदा होता है कि आपके पिता इतनी राशि की व्यवस्था कैसे करेंगे। हाँ, आपका सोचना सही है, वह आज से ही बचत करना प्रारम्भ करेंगे तथा प्रत्येक वर्ष वह यही करेंगे। जो घटनाएं भविष्य में घटित हो सकती हैं, उनकी योजना उपलब्ध संसाधनों से वर्तमान में ही बना ली जाती है। इसी प्रकार व्यवसाय में भी यही किया जाता है।
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जब भी निश्चित हानि अथवा व्यय की संभावना होती है, तो उनके लिए व्यवस्था वर्तमान वर्ष के लाभ/अधिक्य में से अग्रिम रूप से कर ली जाती है। सम्भावित हानि/व्यय के लिए जो राशि अलग से रख ली जाती है, उसे प्रावधान कहते हैं। यदि किसी राशि का भविष्य में भुगतान किया जाना है तथा यह राशि निश्चित है तो यह देयता है।
उदाहरण के लिए अक्टूबर माह का रू. 2,000 किराए का भुगतान 31 अक्टूबर को किया जाता है तथा उसका भुगतान अभी तक नहीं किया गया है तो उपक्रम, किराया खाता को नाम तथा अदत्त किराया खाता को जमा करेगा क्योंकि यह एक निश्चित देयता है। लेकिन यदि देनदारी अथवा संभावित हानि की राशि निश्चित नहीं हैं तो लाभ-हानि खाते के नाम में लिखकर एक अनुमानित राशि को अलग से रख लिया जाएगा। इस अलग रखी गई राशि को प्रावधान कहेंगे। इस प्रकार से प्रावधान का अर्थ है भविष्य में अनिश्चित हानि/व्यय के भुगतान के लिए अनुमानित राशि। 

प्रावधान के कुछ उदाहरण हैं 

  • देनदारों पर संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान
  • देनदारों पर बट्टा राशि के लिए प्रावधान
  • ह्रास के लिए प्रावधान।

प्रावधान की आवश्यकता

प्रावधान निम्न के लिए किए जाते हैं :
  • ह्रास, सम्पत्तियों के मूल्य का पुनर्मूल्यांकन अथवा कटौती।
  • एक ज्ञात देयता जिसकी राशि का सटीक निर्धारण करना संभव नहीं है।
  • विवादित दावा
  • सम्पत्ति की वसूली अथवा करों के भुगतान पर विशिष्ट हानि
  • देयता का भुगतान
  • अप्राप्य ऋणों/संदिग्ध ऋणों का अपलेखन
  • आकस्मिक देयताएँ

प्रावधान के लिए सामान्य नियम

  • इसका सजन लाभ हानि खाते के नाम में प्रविष्टि करके किया जाता है।
  • इसका सृजन ज्ञात देयता अथवा निश्चित आकस्मिक व्यय के लिए किया जाता है, जैसे कि अप्राप्य एवं संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान एवं ह्रास के लिए प्रावधान आदि।
  • व्यवसाय में लाभ हो अथवा हानि, प्रावधान की व्यवस्था करनी ही होती है।
  • यह अंशधारकों में लाभांश वितरण के लिए उपलब्ध नहीं होता है।
  • प्रावधान एक निश्चित राशि का किया जाता है, इसलिए ज्ञात आकस्मिकता के लिए
  • प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि एक ओर रख दी जाती है।
  • ज्ञात देयता एवं आकस्मिकता के लिए प्रावधान करना अनिवार्य है।
  • प्रावधान को सामान्यतः स्थिति विवरण की देयता की ओर दिखाया जाता है।

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