संचित कोष | sanchit kosh

संचित कोष

संचित कोष की स्थापना, दीर्घ अवधि ऋण अथवा देयताओं के शोधन अथवा सम्पत्तियों के प्रति स्थापन अथवा पट्टाधिकार के नवीनीकरण के लिए की जाती है। संचित कोष का निर्माण वार्षिक योगदान द्वारा किया जाता है। इस योगदान राशि का व्यवसाय के बाहर, सरलता से बिक्री योग्य प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है। निवेश पर प्राप्त ब्याज को पुनः उन्हीं प्रतिभूतियों में विनियोग कर दिया जाता है।
sanchit kosh
अतः संचित कोष हो सकता है :-
  • (i) स्थाई सम्पत्तियों की प्रति स्थापना के लिए अथवा
  • (ii) ऋणपत्रों के शोधन अथवा ऋण के पुनर्भुगतान के लिए।
स्थाई सम्पत्तियों की प्रति स्थापना के लिए संचित कोष एक प्रावधान होता है। लेकिन ऋणपत्रों के शोधन अथवा ऋण की वापसी के लिए संचित कोष, लाभ का विनियोजन होता है। कम्पनी को संचितकोष के सृजन की आवश्यकता नहीं होती।
संचय, लाभ के विनियोजन होते हैं अर्थात् जिनमें प्रावधान एवं अन्य व्यय सम्मिलित हैं, के घटा देने पर लाभों का निर्धारण किया गया हो। संचय, अवशिष्ट आय होते हैं, जो सभी व्ययों एवं कराधान आदि के पश्चात बचे रहते हैं तथा इन पर स्वामियों अर्थात् अंशधारकों का अधिकार होता है।
  • संचित कोष निवेश, एक निश्चित अवधि के लिए होता है।
  • यह सदा आबंटन के लिए लाभ में से नहीं होता, उदाहरण के लिए सम्पत्ति के प्रति स्थापन के लिए संचित कोष, ह्रास के लिए प्रावधान होता है। इसका सृजन लाभ के न होने पर भी अनिवार्य रूप से किया जाता है।
  • संचित कोष के ब्याज को सदैव पुनः निवेश किया जाता है।
संचित कोष, वार्षिक योगदानों द्वारा निर्मित होता है। योगदानों को व्यवसाय के बाहर सरलता से बिक्री योग्य प्रतिभूतियों में निवेश कर दिया जाता है। विनियोजित राशि पर प्राप्त ब्याज को उन्हीं प्रतिभूतियों में पुनः निवेशित कर दिया जाता है।

एक संचित कोष

(i) स्थाई सम्पत्तियों की प्रति स्थापना के लिए (ii) ऋणपत्रों के शोधन एवं ऋण को चुकता करने के लिए होता है। स्थाई सम्पत्ति की प्रतिस्थापना के लिए संचित कोष एक प्रावधान है। लेकिन ऋणपत्रों के शोधन एवं ऋण के चुकता करने के लिए संचित कोष लाभों का विनियोजन है। संचित कोष यह दर्शाता है कि राशि का व्यवसाय से बाहर निवेश किया गया है।

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