भारत की जलवायु
- परंपरागत सिद्धांत
- अभिनव सिद्धांत
- तापीय सिद्धांत
- विषुवतरेखीय पछुवा पवन सिद्धांत
- जेट स्ट्रीम सिद्धांत
- एल-नीनो सिद्धांत
- इस सिद्धांत के विकास में ब्रिटिश भूगोलवेत्ता बेकर एवं स्टैंप ने योगदान दिया है।
- इस सिद्धांत के अनुसार सूर्य जब उत्तरायण में होता है तब भारतीय उपमहाद्वीप तेजी से गर्म हो जाता है एवं निम्न दाब का निर्माण होता है, जिसका केंद्र उत्तर-पश्चिम भारत में स्थित होता है।
- यहाँ पर इस समय विषुवतीय निम्न दाब के क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप के निम्न भार की तुलना में उच्च दाब के क्षेत्र बन जाते हैं, परंतु दक्षिणी गोलार्द्ध के उपोष्ण उच्च दाब की तुलना में यहाँ भी निम्न दाब रहता है। अतः दक्षिणी गोलार्द्ध के उपोष्ण उच्च दाब की हवाएँ विषुवतीय निम्न दाब की तरफ रहती हैं। फलस्वरूप विषुवतीय प्रदेश में वायु दाब बढ़ने लगता है एवं यहाँ से हवाएँ दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में भारत में प्रवाहित होने लगती हैं।
- यह सिद्धांत ब्रिटिश भूगोलवेत्ता फ्लोन द्वारा प्रतिपादित किया गया है।
- इस सिद्धांत के अनुसार सूर्य के ताप के प्रभाव से उत्तर के मैदान में अत्यंत ही निम्न दाब का निर्माण होता है।
- इस प्रकार हिंद महासागर एवं उत्तर के मैदान के बीच तीव्र दाब प्रवणता का विकास होता है फलतः अंतराउष्णकटिबंधीय क्षेत्र (ITCZ) का खिसकाव होता है।
- ITCZ के खिसकाव के साथ विषुवतरेखीय पछुवा पवन भी उत्तर की ओर खिसक जाती है एवं सागरीय हवाओं के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप पर प्रवाहित होने लगती है। यही दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवन है।
- मानसून की उत्पत्ति के लिये सतह के निकट निम्न दाब के अलावा ऊपरी वायुमंडल में भी निम्न दाब का होना आवश्यक है।
- ग्रीष्म ऋतु के पूर्व गंगा के मैदान के ऊपर 6-12 किमी. की ऊँचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर उपोष्ण जेट स्ट्रीम प्रवाहित होती रहती है।
- ग्रीष्म ऋतु के आगमन के बाद यह उपोष्ण पश्चिमी जेट स्ट्रीम विस्थापित होकर हिमालय के उत्तर में चली जाती है।
- यह उपोष्ण पश्चिमी जेट स्ट्रीम प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर प्रवाहित होने लगती है।
- ग्रीष्म ऋतु में तिब्बत के पठार के काफी गर्म होने के कारण उष्ण पूर्वी जेट की उत्पत्ति होती है। यह पूर्वी जेट स्ट्रीम ही मानसून की उत्पत्ति में सहायक है।
- इस सिद्धांत के विकास में गिल्बर्ट वाकर ने विशेष योगदान दिया है। उनके अनुसार समुद्री सतह के तापमान का प्रभाव वायु दाब एवं हवाओं पर पड़ता है। यह सिद्धांत कर्क एवं मकर रेखाओं के बीच हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर की सतह के जल के तापमान के अध्ययन पर आधारित है।
- वाकर ने बताया कि हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर के ऊपर वायु दाब में समुद्री हवा का प्रतिरूप पाया जाता है। जब प्रशांत महासागर के ऊपर वायु दाब निम्न होता है तब यह स्थिति भारतीय मानसून के लिये अनुकूल होती है। इस प्रक्रिया को दक्षिण दोलन के नाम से भी जाना जाता है। इसे 'वाकर चक्र' या 'दोलन चक्र' भी कहा जाता है। दोलन चक्र के कमजोर होने का कारण एल-नीनो जलधारा की उत्पत्ति होती है। इस जलधारा की उत्पत्ति का अंतराल 2 से 5 वर्ष के बीच होता है। यह जलधारा दक्षिण अमेरिका के पेरू के तट के निकट 3° से 36° दक्षिण अक्षांश के बीच प्रवाहित होती है। इसका संबंध विषुवतरेखीय क्षेत्र में होने वाले वायु दाब में परिवर्तन से है।
- इस जलधारा की उत्पत्ति के साथ पेरू तट के निकट ठंडे जल का ऊपर उठना रुक जाता है। इस प्रकार एल-नीनो जलधारा के कारण प्रशांत महासागर में एक वृहत् निम्न दाब का निर्माण हो जाता है एवं यहाँ से हवाएँ ऊपर उठकर ऑस्ट्रेलिया एवं इंडोनेशिया के निकट नीचे उतरने लगती हैं। इस प्रकार दक्षिणी दोलन का सूचक गिरने लगता है एवं ऋणात्मक होने लगता है। यह भारतीय मानसून के लिये प्रतिकूल परिस्थिति है।
भारत में मानसून का आगमन (Arrival of Monsoon in India)
- अरब सागर शाखा
- बंगाल की खाडी शाखा
- अरब सागर शाखा द्वारा भारत के पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, महाराष्ट्र, गुजरात एवं मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों
- में वर्षा होती है।
- उत्तर-पश्चिमी भारत में यह शाखा बंगाल की खाड़ी की शाखा से मिल जाती है।
- अरब सागर शाखा द्वारा पश्चिमी घाट पर्वत के पश्चिमी ढाल पर तटीय भाग की तुलना में अधिक वर्षा होती है। उदाहरण के लिये महाबलेश्वर में वर्षा की मात्रा लगभग 650 सेमी. होती है जबकि मुंबई में घटकर लगभग 190 सेमी. ही रह जाती है।
- पश्चिमी घाट क्षेत्र के दक्षिणी भाग में उत्तरी भाग की तुलना में अधिक वर्षा होती है। वृष्टि छाया प्रदेश में स्थित होने के कारण पूर्व में लगभग 60 सेमी. वर्षा होती है।
- अरब सागर मानसून की एक शाखा राजस्थान से गुजरती हुई हिमालय से टकराती है एवं जम्मू और कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश की पर्वतीय ढालों पर वर्षा लाती है।
- अरावली पर्वत की दिशा पवनों के समानांतर होना।
- पाकिस्तान की ओर से आने वाली गर्म एवं शुष्क हवाएँ न केवल अरब सागर शाखा पर मानसूनी पवनों को ऊपर उठने से रोकती हैं, बल्कि उसकी आर्द्रता को भी कम कर देती हैं। इसके फलस्वरूप वर्षा होती है।
- गारो, खासी एवं जयंतिया पहाड़ियाँ कीपनुमा आकृति में स्थित हैं एवं समुद्र की ओर से खुली हुई हैं। इसलिये यहाँ पर बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाएँ अधिक वर्षा लाती हैं। यहाँ स्थित मासिनराम विश्व में सर्वाधिक वर्षा (1141 सेमी.) वाला स्थान है।
- कभी-कभी निम्न दाब क्षेत्र का विस्तार बंगाल की खाड़ी के उत्तरी भाग में हो जाता है, इससे वहाँ पूर्वी अवदाब का निर्माण होता है। उत्पत्ति के पश्चात् यह अपने औसत स्थान से उत्तर एवं दक्षिण की ओर खिसकता रहता है, फलस्वरूप मानसूनी अवदाब का मार्ग भी परिवर्तित होता है। इससे वर्षा की मात्रा में उतार-चढ़ाव आता है। इस प्रकार के अवदाबों की संख्या जून से लेकर सितंबर के बीच प्रत्येक महीने 2 से 4 तक होती है।
- बंगाल की खाड़ी में मानसून की उत्तरी-पूर्वी शाखा जैसे-जैसे पश्चिम की ओर बढ़ती है, वैसे-वैसे वर्षा की मात्रा में कमी आती है। इसी प्रकार पर्वतीय क्षेत्र से दूर जाने पर भी वर्षा की मात्रा में कमी आती है।
- पश्चिमी तट पर - आर्द्र पवनों का तट के समानांतर प्रवाहित होना।
- उत्तर भारत के मैदानों में - अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र में परिवर्तन व उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में कमी।
- राजस्थान में - वायुमंडल की निचली परतों में तापीय विलोमता के प्रभाव से आर्द्र वायु के आरोहण में बाधा उत्पन्न होने से।
ऋतुएँ (Seasons)
- शीत ऋतु
- ग्रीष्म ऋतु
- वर्षा ऋतु
- शरद ऋतु
भारत की ऋतुएँ
- इस ऋतु का समय 15 दिसंबर से 15 मार्च तक माना जाता है।
- इस समय सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण संपूर्ण भारत में तापमान नीचे चला जाता है। सबसे कम तापमान उत्तर-पश्चिमी भारत में पाया जाता है, यहाँ शीतलहर एवं रात में पाला का भी प्रकोप होता है।
- इस ऋतु में समताप रेखाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर प्रायः सीधी रहती हैं। 20° से.ग्रे. की समताप रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है।
- इस ऋतु में उत्तर-पश्चिम भारत में एक क्षीण उच्च दाब का निर्माण होता है एवं वहाँ से पवन निम्न दाब वाले क्षेत्र की ओर चलने लगती है।
- इसे शीतकालीन मानसून के नाम से जाना जाता है। इस उत्तर-पूर्वी मानसून से तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में वर्षा होती है।
- इस ऋतु में भूमध्य सागर की ओर से चलने वाले शीतोष्ण चक्रवात ईरान, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान होते हुए भारत में प्रवेश करते हैं।
- यह ऋतु 15 मार्च से 15 जून तक रहती है।
- इस समय सूर्य के उत्तरायण होने के कारण पूरे भारत के तापमान में बढ़ोतरी होती है।
- इस ऋतु में उत्तर व उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्म हवाओं का प्रकोप रहता है।
- इस ऋतु में अंतराउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) उत्तर की ओर खिसकने लगता है एवं हवाएँ| जुलाई में 25° उत्तरी अक्षांश रेखा को पार कर जाती हैं।
- इस ऋतु में स्थलीय गर्म एवं शुष्क पवन तथा आर्द्र समुद्री पवनों के मिलने से तूफान एवं तड़ित आंधी की उत्पत्ति होती है। इन तूफानों को उत्तर भारत में आंधी, पूर्वी भारत में नार्वेस्टर एवं बंगाल में काल | वैशाखी कहा जाता है।
- इन तूफानों से थोड़ी वर्षा होती है, कर्नाटक में ऐसी वर्षा को चेरी ब्लॉसम कहा जाता है। यह वर्षा कॉफी उत्पादन के लिये लाभदायक है।
- यह ऋतु 15 जून से 15 सितंबर तक रहती है।
- इस ऋतु के समय उत्तर-पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान में निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसे मानसून गर्त के नाम से जाना जाता है।
- सामान्यतः इस ऋतु में दक्षिण-पश्चिम मानसून अंडमान-निकोबार में 20 मई, केरल के मालाबार तट पर 1 से 5 जून, कोलकाता एवं मुंबई में 10 से 14 जून, दिल्ली, पंजाब एवं हरियाणा में 25 से 30 जून एवं सुदूर पश्चिम भाग में 1 जुलाई एवं असम में 5 जून तक पहुँचता है।
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक |
|
प्रभाव |
करक |
स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार |
भारत 8°4'
उत्तर
से 37°6' उत्तरी
अक्षांशों के मध्य स्थित है। कर्क रेखा भारत के बीच से होकर गुजरती है। विषुवत रेखा के पास होने के कारण दक्षिणी
भाग में साल भर उच्च तापमान रहता है। भारत का उत्तरी भाग गर्म शीतोष्ण पेटी में
स्थित है। इसलिये यहाँ विशेषकर शीतऋतु में निम्न तापमान होता है। |
समुद्र से दूरी |
प्रायद्वीपीय भारत अरब सागर,
हिंद
महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से पूर्णत: घिरा हुआ है। इसलिये भारत के तटीय
प्रदेशों की जलवायु सम रहती है। जो प्रदेश देश के आंतरिक भागों में स्थित
हैं,
वहाँ
समुद्र से दूरी होने के कारण जलवायु विषम पाई जाती है। |
स्थलाकृति |
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थलाकृतिक
लक्षण वहाँ के तापमान, वायुमंडलीय दाब,
पवनों
की दिशा तथा वर्षा की मात्रा को पूर्ण रूप से प्रभावित
करते हैं। भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत
आर्द्रयुक्त मानसूनी पवनों को रोककर संपूर्ण उत्तरी भारत में वर्षा कराता है। मेघालय पठार में पहाड़ियों की कीपनुमा
आकृति होने के कारण यह क्षेत्र मानसूनी पवनों द्वारा विश्व के सर्वाधिक वर्षा
वाले क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। अरावली पर्वत मानसूनी पवनों की दिशा के
समानांतर स्थित है, इसलिये यह मानसूनी पवनों को रोक
नहीं सकता है जिसके कारण राजस्थान का एक विस्तृत क्षेत्र मरुस्थल हो गया है। पश्चिमी घाट दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी
पवनों के मार्ग में दीवार के समान खड़ा है, जिसके
कारण इस पर्वतमाला की पश्चिमी ढालों तथा
पश्चिमी तटीय मैदान में भारी वर्षा होती है। पश्चिमी घाट के पूर्व में वृष्टि छाया
क्षेत्र हो जाने के कारण वर्षा कम होती है। |
उत्तर पर्वतीय श्रेणियाँ |
ये श्रेणियाँ शीतकाल में मध्य एशिया से
आने वाली अत्यधिक ठंडी व शुष्क पवनों से भारत की रक्षा करती हैं। ये पर्वत श्रेणियाँ दक्षिण-पश्चिम मानसूनी
पवनों के सामने एक प्रभावी अवरोध बनाती हैं। ये श्रेणियाँ उपमहाद्वीप तथा मध्य एशिया
के बीच एक जलवायु विभाजक का कार्य करती हैं। |
मानसूनी पवनें |
ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिमी पवनें समुद्र
से स्थल की ओर चलती हैं एवं संपूर्ण भारत में प्रचुर वर्षा कराती हैं। शीतकालीन उत्तरी-पूर्वी मानसूनी पवनें
स्थल से समद्र की ओर चलती हैं तथा वर्षा कराने में असमर्थ होती हैं। बंगाल की खाड़ी से कुछ जलवाष्प प्राप्त
करने के पश्चात् शीतकालीन पवनें तमिलनाडु के तट पर थोड़ी वर्षा कराती हैं। |
पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात |
पश्चिमी विक्षोभ भारतीय उपमहाद्वीप में
पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ भूमध्य सागरीय प्रदेश से आते हैं। यह देश के उत्तरी
मैदानी भागों व पश्चिमी हिमाचल प्रदेश की शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करते
हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवात अधिकांशतः बंगाल की
खाड़ी में ही उत्पन्न होते हैं। इन चक्रवातों की तीव्रता तथा दिशा दक्षिण-पश्चिम मानसून
काल में भारत के अधिकांश भागों तथा पीछे हटते मानसून की ऋतु,
पूर्वी
तटीय भागों को प्रभावित करती हैं। कुछ चक्रवात अरब सागर में भी उत्पन्न होते
हैं। |
एल-नीनो प्रभाव |
भारत में मौसमी दशाएँ एल-नीनो से भी
प्रभावित होती हैं। यह एल-नीनो विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में विस्तृत बाढ़ और सूखे के
लिये उत्तरदायी है। एल-नीनो एक गर्म समुद्री जलधारा है जो
अचानक दक्षिणी अमेरिका के पेरू तट से कुछ दूरी | पर दिसंबर के महीने में उत्पन्न होती है। एल-नीनो कई बार पेरू की ठंडी धारा के
स्थान पर अस्थायी गर्म धारा के रूप में प्रवाहित होने लगती है। एल-नीनो के
कभी-कभी अधिक तीव्र होने पर यह समुद्र के ऊपरी जल के तापमान को 10°
तक
बढ़ा देती है। उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय जल के
गर्म होने से भूमंडलीय दाब व पवन तंत्रों के साथ-साथ हिंद महासागर में मानसूनी
पवनें भी प्रभावित होती हैं। |
दक्षिणी दोलन |
दक्षिणी दोलन मौसम विज्ञान से संबंधित
वायु दाब में होने वाले परिवर्तन का प्रतिरूप है जो हिंद व प्रशांत महासागर के मध्य प्रायः उत्पन्न
होता है। जब वायु दाब प्रशांत महासागर क्षेत्र पर
अधिक होता है एवं हिंद महासागर पर कम होता है तो भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून
अधिक शक्तिशाली होता है, इसके विपरीत अन्य परिस्थितियों में
मानसून कमजोर होता है। |
ऊपरी वायु परिसंचरण |
भारत में मानसून के अचानक विस्फोट का एक
अन्य कारण भारतीय भू-भाग के ऊपर वायु परिसंचरण परिसंचरण में होने वाला परिवर्तन
भी है। |
पश्चिमी जेट वायुधारा |
शीतकाल में, समुद्र
तल से लगभग 12 किमी. की ऊँचाई पर पश्चिमी जेट वायुधारा अधिक तीव्र गति से
समशीतोष्ण कटिबंध के ऊपर चलती है। यह जेट वायुधारा भूमध्य सागरीय प्रदेशों
से पश्चिमी विक्षोभों को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने के लिये उत्तरदायी है। उत्तर-पश्चिमी मैदानों में होने वाली
शीतकालीन वर्षा व ओलावृष्टि तथा पहाड़ी प्रदेशों में कभी-कभी होने वाला भारी
हिमपात इन्हीं विक्षोभों का परिणाम है। |
पूर्वी जेट वायुधारा |
ग्रीष्मकाल में सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध
में आभासी गति के कारण ऊपरी वायु परिसंचरण में परिवर्तन हो जाता है। पश्चिमी जेट वायुधारा के स्थान पर पूर्वी
जेट वायुधारा चलने लगती है जो तिब्बत के पठार के गर्म होने से उत्पन्न होती है। इसके कारण पूर्वी ठंडी जेट वायुधारा
विकसित होती है जो 15° उत्तरी अक्षांश के आस-पास प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर चलने लगती है। पूर्वी जेट धारा दक्षिण-पश्चिम मानसूनी
पवनों के अचानक आने में सहायता प्रदान करती है। |
वर्षा का वितरण (Distribution of Rain)
- भारत में लगभग 70% वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है। यह वर्षा जून से सितंबर के मध्य 4 माह के दौरान होती है।
- भारत के 12% क्षेत्र में 60 सेमी. से कम वर्षा होती है। वर्षा की मात्रा राजस्थान की ओर घटती जाती है।
- भारत के 8% क्षेत्र में 250 सेमी. से भी अधिक वर्षा होती है।
- भारत में अधिकांश वर्षा पर्वतीय प्रकार की होती है।
- भारत में औसत वर्षा 125 सेमी. है परंतु देश के विभिन्न भागों में वर्षा की मात्रा में काफी भिन्नता पाई जाती है।
वर्षा की
मात्रा के आधार पर क्षेत्र का वितरण वर्षा |
|
वर्षा |
क्षेत्र |
सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र |
यहाँ
वर्षा 200 सेमी. से अधिक होती है। इसके तीन मुख्य क्षेत्र हैं पश्चिमी
घाट पर्वत का पश्चिमी ढाल एवं उससे सटा हुआ तटीय क्षेत्र अंडमान
एवं निकोबार द्वीप समूह उत्तर-पूर्वी
भारत (अपवाद-त्रिपुरा, मणिपुर) |
सामान्य वर्षा वाले क्षेत्र |
यहाँ
वर्षा 100 से 200 सेमी. तक होती है। इसके निम्नलिखित क्षेत्र हैं पश्चिम
बंगाल, बिहार, झारखंड,
ओडिशा,
आंध्र
प्रदेश के उत्तरी भाग की एक सँकरी पेटी, महाराष्ट्र
का तटीय भाग, पूर्वी-मध्य प्रदेश। पश्चिम
घाट पर्वतीय क्षेत्र की एक पतली पट्टी जो उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली है। तमिलनाडु
का तटीय भाग। त्रिपुरा,
मणिपुर
एवं निम्न असम घाटी तथा मिकिर पहाड़ी क्षेत्र। |
कम वर्षा वाले क्षेत्र |
यहाँ
वर्षा की मात्रा 50 से 100 सेमी. के बीच होती है। इसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ का
मध्य एवं पश्चिमी भाग, गुजरात, दक्षिण
एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा,
पंजाब,
पूर्वी
राजस्थान, कर्नाटक,
आंध्र प्रदेश का अधिकांश भाग आते हैं। |
न्यून वर्षा वाला क्षेत्र |
यहाँ
वर्षा की मात्रा 50 सेमी. से भी कम होती है। इसके अंतर्गत तीन क्षेत्र आते हैं. उत्तरी
गुजरात, पश्चिमी राजस्थान एवं पंजाब,
हरियाणा
का दक्षिणी भाग। यह एक अर्द्ध चंद्राकार पेटी है। पश्चिमी-घाट
पर्वत का वृष्टि छाया प्रदेश। लेह
एवं लद्दाख का मरुस्थल। |
भारत के जलवायु प्रदेश
- थॉर्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण
- कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
- थॉर्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण वर्षा की सार्थकता एवं जल संतुलन पर आधारित है।
- वर्षा की सार्थकता वर्षा प्राप्ति व वाष्पीकरण के बीच का अनुपात है। साथ-ही-साथ इन्होंने तापमान व वर्षा के मौसमी एवं मासिक वितरण को भी ध्यान में रखा है।
- जहाँ पर वर्षा की अधिकता होती है, वहाँ की जलवायु अति आर्द्र होती है एवं जिन क्षेत्रों में वर्षा का अभाव होता है,
- वहाँ की जलवायु शुष्क होती है।
- वर्षा अधिकता वाले क्षेत्र एवं वर्षा न्यूनता वाले क्षेत्र को आधार मानकर भारत की जलवायु का वर्गीकरण किया गया है।
थॉर्नथ्वेट का
जलवायु वर्गीकरण |
|
जलवायु प्रकार |
क्षेत्र |
A- अति
आर्द्र |
उत्तरी-पूर्वी भारत में मिज़ोरम,
त्रिपुरा,
मेघालय,
निचला
असम और अरुणाचल प्रदेश तथा गोवा के दक्षिण में पश्चिमी तट। |
B- आर्द्र |
नागालैंड, ऊपरी
असम और मणिपुर, उत्तरी बंगाल और सिक्किम तथा पश्चिमी
तटवर्ती क्षेत्र। |
C1- शुष्क उप-आर्द्र |
गंगा का मैदान, मध्य
प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड,
उत्तर-पूर्वी
आंध्र प्रदेश, पंजाब और हरियाणा,
उत्तरी-पूर्वी तमिलनाडु, उत्तराखंड, हिमाचल
प्रदेश तथा जम्म और कश्मीर। |
C2- नम उप-आर्द्र |
पश्चिम-बंगाल, ओडिशा,
पूर्वी-बिहार,
पंचमढ़ी
(मध्य प्रदेश), पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल। |
D- अर्द्ध
शुष्क |
तमिलनाडु, आंध्र
प्रदेश, पूर्वी कर्नाटक,
पूर्वी
महाराष्ट्र, उत्तर-पूर्वी गुजरात,
पूर्वी
राजस्थान, पंजाब और हरियाणा का अधिकतर भाग। |
E-शुष्क |
पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी
गुजरात और दक्षिणी पंजाब |
- वार्षिक एवं मासिक औसत तापमान
- वार्षिक एवं मासिक वर्षा
- वनस्पति
कोपेन के
जलवायु प्रदेश |
|
जलवायु के प्रकार |
विशेषताएँ |
A- उष्णकटिबंधीय
जलवायु |
यहाँ औसत मासिक तापमान पूरे वर्ष 18°
से.ग्रे.
से अधिक रहता है। |
B- शुष्ककटिबंधीय
जलवायु |
यहाँ तापमान की तुलना में वर्षण बहुत कम
होता है, इसलिये शुष्क है। शुष्कता के कम
होने पर अर्द्ध शुष्क मरुस्थल (S) होता
है। इसके विपरीत शुष्कता अधिक होने पर मरुस्थल (W) होता
है। |
C- उष्णार्द्र
समशीतोष्ण जलवायु |
यहाँ सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान 80
डिग्री. से.ग्रे. से 18°
से.ग्रे. के बीच रहता है। |
D- शीत
जलवायु |
यहाँ सबसे कोष्ण महीने का औसत तापमान 10°
से.ग्रे. से अधिक और सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान 3°
से.ग्रे.
से कम रहता है। |
E- बर्फ
जलवायु |
यहाँ सबसे कोष्ण महीने का औसत तापमान 10°
से.ग्रे. से कम रहता है। |
कोपेन
की योजना के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश। |
||
जलवायु के प्रकार |
विशेषताएँ |
वितरण |
लघु
शुष्क ऋतु की मानसूनी जलवायु (Amw) |
तापांतर
कम पाया जाता है। वर्षा
की मात्रा 250 सेमी.
से अधिक होती है। वर्षा
मुख्यतः ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण-पश्चिम मानसून के द्वारा होती है। शुष्क
ऋतु की अवधि छोटी होती है, यह
शुष्कता शीत ऋतु में होती है। उष्णकटिबंधीय
सदाबहार वनस्पति पाई जाती है। |
मालाबार
एवं कोंकण तट तथा गोवा के दक्षिण-पश्चिमी घाट। |
उष्णकटिबंधीय
सवाना जलवायु (Aw) |
वर्षा
अधिकतर ग्रीष्म ऋतु में होती है। ग्रीष्म
ऋतु काफी गर्म एवं शीत ऋतु शुष्क होती है। अपेक्षाकृत
तापांतर अधिक होता है। वर्षा
की मात्रा 75-150 सेमी.
होती है। सवाना
प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। |
प्रायद्वीपीय
भारत में कर्क रेखा के दक्षिण का अधिकांश भाग। उत्तर-पूर्व
भारत का कुछ भाग। |
शुष्क
ग्रीष्म ऋतु की मानसूनी जलवायु (As) |
तापांतर
कम पाया जाता है । शीत
ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून से अधिकांश वर्षा होती है ग्रीष्म ऋतु में वर्षा की
मात्रा काफी कम होती है। |
पूर्वी
तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी भाग। |
अर्द्ध
शुष्क स्टेपी जलवायु (BShw) |
वर्षा
ग्रीष्म काल में लगभग 25-60 सेमी.
होती है। वार्षिक
औसत तापमान 18° से.ग्रे.
से अधिक होता है। स्टेपी
प्रकार की वनस्पति पाई जाती है जो मुख्यतः काँटेदार झाड़ियाँ एवं घास होती हैं। |
पश्चिमी
घाट का वृष्टि छाया। मध्यवर्ती
राजस्थान, पश्चिमी पंजाब
एवं हरियाणा |
उष्ण
मरुस्थलीय जलवायु (BWhw) |
ग्रीष्म
ऋतु में तापमान उच्च रहता है। यहाँ
पर प्राकृतिक वनस्पति का अभाव पाया जाता हैं। |
राजस्थान
का पश्चिमी क्षेत्र |
शुष्क
शीत ऋतु की मानसूनी जलवायु (Cwg) |
वर्षा
काफी कम (लगभग 25 सेमी.
से भी कम) होती है। तापमान
अत्यधिक होता है। मरुस्थलीय
प्रकार की नागफनी वनस्पति पाई जाती है। |
यह
भारत के उत्तरी विशाल मैदानी
क्षेत्र में पाई जाती है। उत्तरी
गुजरात। हरियाणा
का दक्षिणी भाग। |
लघु
ग्रीष्म तथा ठंडी आर्द्र शीत
ऋतु जलवायु (Dfc) |
ग्रीष्म
ऋतु छोटी परंतु वर्षा वाली। शीत
ऋतु अधिक ठंडी। वर्षा
ऋतु में चार महीने तापमान 10°
से.ग्रे. से कम लेकिन हिमांक से अधिक। |
हिमालय
का पूर्वी भाग। मुख्यतः
अरुणाचल प्रदेश। |
टुंड्रा
जलवायु (Et) |
शीतकाल
में वर्षा हिमपात के रूप में होती है, फलस्वरूप
यह प्रदेश हिम से ढका रहता है। साल
भर तापमान 10° से.ग्रे.
से भी कम। |
कश्मीर,
लद्दाख
एवं हिमाचल प्रदेश में 3000 से 5000
मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में। |
ध्रुवीय
जलवायु (E) |
साल
भर बर्फ से ढका रहता है। वर्षा
हिमपात के रूप में होती है। तापमान
0°
से.ग्रे.
से भी कम रहता है। |
हिमालय
के पश्चिमी एवं मध्यवर्ती भाग के अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में। |
जलवायु संबंधित प्रमुख शब्दावलियाँ
- मानसूनी वर्षा मुख्यतः पर्वतीय वर्षा ही होती है।
- मानसूनी हवाओं के सम्मुख पर्वतीय ढालों पर इनके विमुख ढालों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।
- पश्चिमी घाट की पवनमुखी ढालों पर वर्षा अधिक होती है, जबकि विमुख ढाल वृष्टि छाया प्रदेश बन जाती है।
- देश के भिन्न-भिन्न भागों में मानसूनी वर्षा की मात्रा में काफी भिन्नता पाई जाती है। एक ओर जहाँ मासिनराम जैसे स्थान पर 1141 सेमी. वर्षा होती है तो दूसरी ओर थार के मरुस्थल में वर्षा की मात्रा 25 सेमी. से भी कम पाई जाती है।
- जिन स्थानों में मानसून सबसे पहले आता है, वहाँ सबसे अधिक समय तक रहता है एवं जहाँ देर से पहुँचता है, वहाँ से जल्दी लौट जाता है।
- केरल में मानसून की अवधि 5 जून से 30 नवंबर है, जबकि पंजाब के मैदान में यह अवधि 1 जुलाई से 20 सितंबर है। ऐसा देखा गया है कि 10 वर्षों में केवल 2 वर्ष ही मानसून समय पर आता है और समय पर समाप्त होता है।
- मानसूनी वर्षा निरंतर नहीं होती है बल्कि इसमें अंतराल पाया जाता है। अगस्त के महीने में यह अंतराल काफी लंबा हो जाता है।
- मानसून की अवधि चार महीने होती है।
- भारत में 80% वर्षा इन्हीं चार महीनों में ही होती है।
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