भ्रष्टाचार की जड़
भ्रष्टाचार एक जटिल समस्या है और इस समस्या की जड़ देश विशेष के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक ढाँचे में खोजी जा सकती है। प्रायः भ्रष्टाचार को प्रशासनिक या आर्थिक समस्या माना जाता है, परंतु इसका सामाजिक पहलू अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण है। किसी भी समाज में ईमानदारी का स्तर दो बातों पर निर्भर करता है। पहला यह कि समाज अपने सदस्यों को क्या लक्ष्य देता है और दूसरा यह कि समाज अपने सदस्यों को उन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये कौन-से साधन प्रदान करता है। bhrashtachar ki jad kya hai
वर्तमान भारतीय समाज में आर्थिक समृद्धि लोगों के लिये एकमात्र लक्ष्य के रूप में उभरी है। परंतु, इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये समाज अपने सदस्यों को साधन उपलब्ध नहीं करा पाया परिणामस्वरूप धीरे-धीरे आर्थिक समृद्धि के साधन के रूप में भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लिया गया। इससे भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकार्यता भी बढ़ी है। आज भ्रष्टाचार करने वाले को सामाजिक बहिष्कार का भय नहीं सताता बल्कि उसे समाज में अपनी आर्थिक समृद्धि के कारण सम्मान की नज़रों से देखा जाता है।
भ्रष्टाचार ही शुरुआत लोभ से होती है और अवैध धन-अर्जन के बावजूद इसका समापन नहीं होता, क्योंकि लोभ बढ़ता ही जाता है। भ्रष्टाचार के कारणों में स्वार्थ, आर्थिक विषमता, असंतोष, भाई-भतीजावाद तथा नैतिक मूल्यों का ह्रास शामिल हैं। कुछ अन्य कारणों में लालफीताशाही, सरकार की आर्थिक नीतियाँ, आवश्यक वस्तुओं की कमी, वैश्वीकरण- उदारीकरण के कानून, उपभोक्तावादी संस्कृति में वृद्धि तथा चुनावी खर्च का बढ़ता स्तर ज़िम्मेदार है।
भ्रष्टाचार की जड़ निम्नलिखित हैं-
नैतिक मूल्यों का पतन
भारतीय समाज में व्यक्तियों में नैतिक मूल्यों का पतन होने के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। आज व्यक्ति किसी अनुचित तरीके को भी अपनाकर अपना काम निकालना चाहता है।
नौकरशाही
भारत में नौकरशाही की कार्यप्रणाली कानूनों, कठोर नियमों, जटिल प्रक्रियाओं तथा लिखित कार्यवाही से घिरी होने के कारण धन, श्रम एवं समय साध्य होती है। अधिकांश व्यक्ति इन प्रक्रियाओं से परेशान होकर शीघ्रता से अपना कार्य करवाने के लिये रिश्वत देने के लिये बाध्य होते हैं। शासकीय कर्मचारी भी धीरे-धीरे रिश्वत लेने के आदी हो जाते हैं।
भ्रष्टाचार निवारण हेतु कठोर कानूनों का अभाव
भारतीय न्याय प्रणाली भ्रष्टाचार के मामलों का शीघ्र निपटारा करने में असफल रही है। भ्रष्टाचार के मामलों के निपटारे में देरी, कम सज़ा का प्रावधान तथा सज़ा मिलने की न्यूनतम प्रतिशतता की प्रवृत्ति के कारण भ्रष्टाचारियों को कानून का भय नहीं है और इसके कारण वे निरंतर ऐसी गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। भ्रष्टाचार करके भी दंड नहीं मिलने से समाज में गलत संदेश जाता है और दूसरे लोग भी भ्रष्टाचार करने के लिये प्रेरित होते हैं।
उपभोक्तावादी संस्कृति
समाज में बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति एवं भौतिकवाद भ्रष्टाचार का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। भौतिक समृद्धि स्टेटस सिंबल बन गई है। व्यक्ति का सम्मान और सफलता पैसे से आँकी जाती है। ऐसी मानसिकता के चलते लोग अच्छे या बुरे का विचार किये बिना भ्रष्टाचार की अंधी दौड़ में शामिल हो जाते हैं।
नेता-अधिकारियों की साँठ-गाँठ
भ्रष्टाचार का एक महत्त्वपूर्ण कारण नेता-अधिकारियों की मिलीभगत एवं उन्हें मिलने वाला राजनीतिक प्रश्रय है। नेता एवं प्रशासनिक अधिकारी मिल-जुलकर घोटाले करते हैं जिस पर राजनीतिक या प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होता। 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला, बोफोर्स घोटाला, चारा घोटाला, संसद में प्रश्न पूछने के लिये नोट की मांग जैसे कई भ्रष्टाचार राजनीतिक एवं प्रशासनिक नेतृत्व के गठजोड़ के चलते हुए हैं। इसमें अपराधियों की संलिप्तता ने समस्या को और अधिक विकराल कर दिया है।
पारदर्शिता का अभाव
पारदर्शिता का अभाव भ्रष्टाचार की प्रक्रिया को आसान बनाता है क्योंकि गोपनीयता की आड़ में ऐसे आँकड़े छुपा लिये जाते हैं जो भ्रष्टाचार को सामने ला सकें। शासकीय संस्थाओं में अपारदर्शिता के कारण भ्रष्टाचार के अधिक रास्ते मिलते हैं।
कम वेतन
भ्रष्टाचार बढ़ने का एक बड़ा कारण शासकीय कर्मचारियों का कम वेतन भी है। कर्मचारियों को वेतन कम मिलता है, साथ ही महँगाई बढ़ने के अनुरूप महँगाई भत्ता भी नहीं मिलता। महँगाई की मार वेतनभोगियों पर पड़ने से वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अनुचित साधनों का प्रयोग कर भ्रष्टाचार करते हैं।
प्रशासकीय अनिश्चितता
प्रशासकीय अनिश्चितता के कारण भी भ्रष्टाचार बढ़ता है। प्रशासन में लालफीताशाही, अक्षमता, औपचारिकता एवं असंवेदनशीलता के कारण प्रशासकीय अनिश्चितता की स्थिति रहती है। जब तक अवैध साधनों का सहारा नहीं लिया जाता तब तक फाइल दबी रहती है। साथ ही शासकीय कार्य संस्कृति में जनसामान्य से दूरी बनाकर रहने से संवाद के अभाव में लोग शीघ्र काम कराने के लिये पैसे एवं अन्य साधनों की मांग स्पीड मनी के रूप में करते हैं।
सरकार की अक्षमता
सरकार की अक्षमता तथा देश की बड़ी जनसंख्या भ्रष्टाचार का एक अन्य बड़ा कारण है। इतनी बड़ी जनसंख्या को सरकार गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक सेवाएँ उपलब्ध नहीं करा पा रही है इसलिये इन सेवाओं को प्राप्त करने के लिये रिश्वत दी जाती है। कुछ सेवाओं (स्वास्थ्य सेवाओं आदि) का निजीकरण कर इस समस्या को हल करने का प्रयास किया गया है लेकिन इससे कई नई समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ गुणवत्ता की दृष्टि से तो बेहतर हैं परंतु उनकी कीमत अत्यधिक है। सेवाओं की इस बढ़ी हुई कीमत को चुकाने के लिये धन भी भ्रष्टाचार से आ रहा है।
भ्रष्टाचार विरोधी लोक-चेतना का अभाव
भारत में भ्रष्टाचार विरोधी लोक-चेतना का अभाव (Lack of Civil Conciousness) देखने को मिलता है। जनता भ्रष्टाचार की शिकायतें नहीं करती। भ्रष्टाचार का विरोध न होना भी इसे बढ़ावा देता है।
प्रशासनिक कार्य-संस्कृति में भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता
प्रशासनिक कार्य-संस्कृति में भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता बढ़ने से भ्रष्टाचार को अधिक बढ़ावा मिला है। 'स्पीड मनी' के रूप में स्वीकार्य रिश्वत प्रशासनिक संस्कृति का हिस्सा बन गई है।
परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण तथ्य
- संथानम समिति ने भ्रष्टाचार को परिभाषित करते हुए कहा है, "सरकारी कर्मचारी द्वारा कार्य निष्पादन के दौरान ऐसा कृत्य जो किसी स्वार्थ की दृष्टि से किया जाए अथवा जान-बूझकर न किया जाए, भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
- भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण हैं- नैतिक आचरण में गिरावट, भौतिकवादी संस्कृति, राजनीतिक हस्तक्षेप, शहरीकरण व औद्योगीकरण, वेतनमान में कमी, समाज में धन का अत्यधिक महत्त्व बढ़ना, न्यायिक एवं प्रशासनिक क्रियाओं में विलंब,अपराध एवं नौकरशाही का गठजोड, पारदर्शिता में कमी इत्यादि।
- के. संथानम की अध्यक्षता में बनी भ्रष्टाचार निरोधक समिति (1964) ने भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु 137 अनुशंसाएँ प्रस्तुत की थीं।
- भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिये प्रमुख साधन हैं- विभागीय नियंत्रण, वैधानिक उपबंध, लेखा परीक्षण, नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG), केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), राज्य सतर्कता आयोग (SVC), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), लोकपाल एवं लोकायुक्त आदि।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 161 में प्रशासनिक भ्रष्टाचार को परिभाषित करते हुए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
- संथानम समिति की अनुशंसा पर केंद्र सरकार के विभागों में प्रशासनिक भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने हेतु केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) की स्थापना 11 फरवरी, 1964 को की गई। नित्तूर श्रीनिवास राव देश के प्रथम सतर्कता आयुक्त (1964-68) रहे।
- केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) की स्थापना 1 अप्रैल, 1963 को की गई थी। यह एक पुलिस संगठन है जो भ्रष्टाचार निरोध का कार्य भी करता है।
- ओम्बुड्समैन की स्थापना सर्वप्रथम 1809 में स्वीडन में हुई, इसके बाद फिनलैंड (1919), डेनमार्क (1954-55) तथा नॉर्वे (1961-62) में इसकी स्थापना हुई।
- ओम्बुड्समैन (Ombudsman) को ही भारत में लोकपाल या लोकायुक्त कहा जाता है। भारत में लोकपाल या लोकायुक्त नाम वर्ष 1963 में मशहूर कानूनविद डॉ. एल.एम. सिंघवी ने दिया था।
- सर्वप्रथम लोकायुक्त का गठन 1971 में महाराष्ट्र में हुआ था यद्यपि ओडिशा में यह अधिनियम 1970 में पारित हुआ परंतु उसे 1983 में लागू किया गया।
- अक्टूबर 2018 तक देश में 11 राज्यों (केंद्रशासित प्रदेश सहित) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में लोकायुक्त संस्थाएँ कार्य कर रही है।
- आर.टी.आई. अधिनियम और व्हिसल ब्लोअर एक्ट दोनों के ही अलग-अलग उद्देश्य हैं। आर.टी.आई. का उद्देश्य जहाँ लोगों को जानकारियाँ उपलब्ध कराना है, वहीं व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य भ्रष्टाचार का खुलासा करना और खुलासा करने वालों को सुरक्षा प्रदान करना है। हालाँकि दोनों की ही प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में अहम भूमिका है। इन दोनों को एक-दूसरे से उलझाना उचित नहीं होगा।
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 1 जनवरी, 2014 को ही पारित हो गया था परंतु मार्च 2019 में लोकपाल का चयन करने वाली चयन समिति ने भारत के पहले लोकपाल प्रमुख जो सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और मानवधिकार आयोग के वर्तमान सदस्य पिनाकी चंद्र घोष को नियुक्त किया गया।
- लोकपाल संस्था में एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य हो सकते हैं।।
- लोकपाल या लोकायुक्त का कार्यकाल पद धारण करने की तिथि से 5 वर्ष तक या 70 वर्ष की उम्र (जो भी पहले हो) तक होगा।
- 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश पर दो स्तरीय अर्थात् 2 विशेष प्राधिकारियों लोकपाल और लोकायुक्त की हुई थी नियुक्ति।
- लोकपाल शब्द का अर्थ 'लोगों का रक्षक' है जिसका मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक कार्यलयों से भ्रष्टाचार को खत्म करना है।
- मध्य प्रदेश के लोकायुक्त का मुख्यालय राजधानी भोपाल में स्थित है। इसकी सहायता के लिये विशेष पुलिस स्थापना का गठन किया गया है।
- भ्रष्टाचार बोध सूचकांक प्रतिवर्ष ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा जारी किया जाता है।
- अनुच्छेद 311 सिविल सेवाओं को भ्रष्टाचार संबंधी मामलों में अभियोजन से संबंधित संवैधानिक रक्षण देता है जिसका लाभ अधिकतर भ्रष्ट लोक-सेवक उठाते हैं जो कि भ्रष्टाचार के बाद भी अपने पदों पर बने रहते हैं। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसे समाप्त करने की सिफारिश की है।
- भ्रष्टाचार निवारण हेतु जून 1962 में संथानम समिति का गठन किया गया था। इसने अपनी रिपोर्ट मार्च 1964 में सरकार को सौंपी। हाल ही में भ्रष्टाचार निवारण हेतु कुछ पहल की गई है, जैसे- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को अपने नामांकन भरते समय उसके साथ उनके धन, शैक्षणिक योग्यताएँ और आपराधिक पूर्ववृत्तों से संबंधित ब्योरे को जमा करना चाहिये।
- सूचना संचार तकनीकों का आरंभ, ई-गवर्नेस की पहलों और प्रशासन में भ्रष्टाचार में लिप्त प्रक्रियाओं की स्वायत्तता ने भ्रष्टाचार को कम करने में सफलता प्राप्त की है।
- DAT (DigitalAudio Tape) : डिजिटल ऑडियो टेप गुणवत्ता के पेशेवर स्तर पर टेप पर ऑडियो के डिजिटल रिकॉर्डिंग के लिये एक मानक माध्यम और तकनीक है। यह भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिये साक्ष्य हेतु प्रयुक्त होती है।
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