मनोविज्ञान manovigyan
मनोविज्ञान में प्राणियों का अध्ययन किया जाता है। प्राणी कैसे प्रत्यक्षण करता है, सीखता है, सोचता है, याद करता है, समझता है तथा साथ-ही-साथ अपने पर्यावरण (environment) की वस्तुओं एवं घटनाओं के साथ किस तरह से अन्तःक्रियाएँ (interactions) करता है, आदि का अध्ययन मनोविज्ञान में किया जाता है।
इसके अलावा मनोवैज्ञानिक कुछ इन प्रश्नों का भी उत्तर ढूँढने का प्रयास करते हैं - व्यक्ति क्यों किसी चीज को आसानी से याद कर लेता है तथा दूसरी चीज को काफी प्रयासों में भी नहीं याद कर पाता है? व्यक्ति में चिन्तन (thinking) का विकास कैसे होता है? भिन्न-भिन्न व्यक्तियों का प्रत्यक्षण भिन्न क्यों होता है? व्यक्तित्व का विकास कैसे होता है, आदि-आदि। इस उत्सुकता एवं जिज्ञासा के कारण ही हम ये सोचने के लिये भी बाध्य हो जाते हैं कि किस प्रकार लोग एक दूसरे से बुद्धि, अभिक्षमता तथा स्वभाव में भिन्न है : वे कभी प्रसन्न तो कभी दुःखी क्यों होते हैं। किस प्रकार वे एक दूसरे के मित्र या शत्रु हो जाते हैं? कुछ लोग किसी कार्य को जल्दी सीख लेते हैं, जबकि दूसरे उसी कार्य को सीखने में अपेक्षाकृत अधिक समय क्यों लगाते हैं? इन प्रश्नों का उत्तर एक अनुभवहीन व्यक्ति भी दे सकता है, तथा वह व्यक्ति भी जिसे मनोविज्ञान का ज्ञान है। एक अनुभवहीन व्यक्ति सामान्य ज्ञान के आधार पर इन प्रश्नों का उत्तर देता है, जबकि एक मनोवैज्ञानिक इन क्रियाओं के पीछे छिपे कारणों का क्रमबद्ध रूप से अध्ययन करने के बाद इन प्रश्नों के वैज्ञानिक उत्तर देता है। psychology in hindi
मनोविज्ञान का अर्थ
“मन के विज्ञान" को मनोविज्ञान कहा जाता हैं। भारतीय वाड्मय में उसकी प्रकृति पश्चिम के मनोविज्ञान के समान शैक्षणिक (Educational) नहीं होकर आध्यामित्क (Spiritual) हैं। अतः उसे “मन का ज्ञान" कहना अधिक सार्थक प्रतीत होता है। प्राचीन भारत में मनोविज्ञान को आत्मा के विज्ञान और चेतना के विज्ञान के रूप में लिया जाता है। भारतीय मनीषी आध्यात्मिक साधना, जिसमें ध्यान, समाधि और योग भी सम्मिलित था, के द्वारा जो अनुभव एवं अनुभूतियां प्राप्त करते थे उनके आधार पर मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान भी तलाशा जाता था।
यूं तो पाश्चात्य मनोविज्ञान का उद्भव भी दर्शन से हुआ हैं। मनोवैज्ञानिक मन के अनुसार “मनोविज्ञान, व्यवहार और अनुभूति का एक निश्चित विज्ञान है जिसमें व्यवहार को अनुभूति के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है"।
मनोविज्ञान की परिभाषा और लक्ष्य
मनोविज्ञान (Psychology) दो ग्रीक शब्दों, 'Psyche' तथा 'Logos' के मिलने से बना है। 'Psyche' का अर्थ 'आत्मा' तथा 'Logos' का अर्थ अध्ययन करना अथवा 'विवेचना' करना होता है। अतः इस शाब्दिक अर्थ के अनुसार मनोविज्ञान को आत्मा का अध्ययन करने वाला (study of soul) विषय माना गया है। आरंभिक ग्रीक दार्शनिकों जैसे अरस्तू (Aristotle) तथा प्लेटो (Plato) ने मनोविज्ञान को आत्मा का ही विज्ञान कहा। 17वीं शताब्दी के दार्शनिकों जैसे लिबिनिज (Leibinitz), लॉक (Locke) आदि ने 'Psyche' शब्द का अधिक उपयुक्त अर्थ मन' (mind) से लगाया। और इस तरह से इन लोगों ने मनोविज्ञान को मन के अध्ययन (study of mind) का विषय माना। परन्तु आत्मा या मन ये दोनों ही कुछ पद ऐसे थे जिनका स्वरूप अप्रेक्षणीय (unobservable) तथा अदर्शनीय था। अतः इन दोनों तरह की परिभाषाओं को वैज्ञानिक अध्ययन के लिए स्वीकार्य नहीं माना गया। इसके बाद लोगों ने मनोविज्ञान को चेतना (consciousness) या चेतन अनुभूति (conscious experience) के अध्ययन को विज्ञान कहा। विलियम वुण्ट (Wilhelm Wundt) तथा उनके शिष्य टिचेनर (Titchener) इस परिभाषा के प्रमुख समर्थक थे। परन्तु इस परिभाषा को भी वैज्ञानिक अध्ययन के लिए स्वीकार्य नहीं माना गया क्योंकि इससे वैज्ञानिक ढंग से प्रेक्षणीय करने एवं समझने में कोई खास मदद नहीं मिलती थी। विलियम वुण्ट को प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जनक (Father of experimental psychology) कहा जाता है क्योंकि इन्होंने लिपजिंग विश्वविद्यालय में 1879 में पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला खोली थी।
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा मनोविज्ञान को अधिक वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ रूप से परिभाषित करने की कोशिश की गयी। इन लोगों ने मनोविज्ञान को व्यवहार का अध्ययन (study of behaviour) का विज्ञान माना है। मनोविज्ञान को व्यवहार के अध्ययन के विज्ञान के रूप में परिभाषा जे.बी. वाटसन (J.B. Watson) ने सर्वप्रथम दिया था। व्यवहार को एक ठोस एवं प्रेक्षणीय (observable) पहलू के रूप में परिभाषित किया गया।
अतः यह आत्मा, मन तथा चेतना आदि से काफी भिन्न था क्योंकि ये सभी कुछ ऐसे थे जो आत्मनिष्ठ (subjective) थे तथा जिनका प्रेक्षण (observation) भी नहीं किया जा सकता था। इसको विषय-वस्तु व्यवहारात्मक प्रक्रियाएँ (behaviour processes) माना गया जिसे आसानी से प्रक्षेण किया जा सकता है। सीखना, प्रत्यक्षण, हाव-भाव आदि जिनका वस्तुनिष्ठ अध्ययन संभव है, उसका ही अध्ययन मनोविज्ञान करता है। साथ-ही-साथ मनोविज्ञान उन मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) का भी अध्ययन करता है जिनका सीधे प्रेक्षण तो नहीं किया जाता है परन्तु उसके बारे में आसानी से व्यवहारात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आँकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखकर मनोविज्ञान की एक उत्तम परिभाषा सैनट्रोक (Santrock, 2000) के अनुसार, "मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।
बेरोन (Baron, 2001) के अनुसार, “मनोविज्ञान संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं एवं व्यवहार के विज्ञान के रूप में उत्तम ढंग से परिभाषित किया जाता है।"
सिस्सरेल्ली एवं मेअर (Ciccarelli & Meyer, 2006) के अनुसार, “मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।"
मनोविज्ञान की विकास की लम्बी यात्रा के दौरान मनोवैज्ञानिकों एवं मनीषियों ने चिंतन मनन किया तथा मनोविज्ञान के स्वरूप को निर्धारित किया।
अनेक मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान को निम्नानुसार परिभाषित किया है।
- बोरिंग लैगफेल्ड व वेल्ड - "मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है।"
- गैरिसत व अन्य - "मनोविज्ञान का संबंध प्रत्यक्ष मानव व्यवहार से है।"
- स्किनर - “मनोविज्ञान व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है।"
- मन - "आधुनिक मनोविज्ञान का संबध व्यवहार की वैज्ञानिक खोज से है।"
- पिल्सबरी - "मनोविज्ञान की सबसे संतोषजनक परिभाषा मानव व्यवहार के विज्ञान के रूप में की जा सकती है।"
- क्रो एवं क्रो - "मनोविज्ञान मानव व्यवहार और मानव संबंधों का अध्ययन है।"
- वुडवर्थ - “मनोविज्ञान वातावरण के संबंध में व्यक्तियों की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।"
- जेम्स - “मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा चेतना के वर्णन और व्याख्या के रूप में की जा सकती
मनोविज्ञान के लक्ष्य
मनोविज्ञान मानव एवं पशु के व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। ऐसे अध्ययन के पीछे उसके कुछ छिपे लक्ष्य (goals) होते हैं।
मनोविज्ञान के मुख्य लक्ष्य निम्नांकित तीन हैं-
- (i) मापन एवं वर्णन
- (ii) पूर्वानुमान एवं नियंत्रण
- (iii) व्याख्या
(i) मापन एवं वर्णन
मनोविज्ञान का सबसे प्रथम लक्ष्य प्रणाली के व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन करना तथा फिर उसे मापन करना होता है। प्रमुख मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे - चिंता, सीखना, मनोवृत्ति, क्षमता, बुद्धि आदि का वर्णन करने के लिए पहले उसे मापना आवश्यक होता है। इसे मापने के लिए कई तरह के परीक्षण की आवश्यकता होती है। इसलिए मनोविज्ञान का एक मुख्य लक्ष्य मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को मापने के लिए परीक्षण या विशेष प्रविधि का विकास करना है।
किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण या प्रविधि में कम-से-कम दो गुणों का होना अनिवार्य है - विश्वसनीयता (reliability) तथा वैधता (validity) विश्वसनीयता से तात्पर्य इस तथ्य से होता है कि बार-बार मापने से व्यक्ति के प्राप्तांक में कोई परिवर्तन नहीं आता है। वैधता से तात्पर्य इस बात से होता है कि परीक्षण वही माप रहा है जिसे मापने के लिए उसे बनाया गया है। मापने के बाद मनोवैज्ञानिक उस व्यवहार का वर्णन करते हैं। जैसे- बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि मापने पर यदि किसी व्यक्ति का बुद्धि लब्धि (intelligence quotient) 150 आता है तो मनोवैज्ञानिक यह समझते हैं कि व्यक्ति तीव्र बुद्धि का है और वह विभिन्न परिस्थितियों में बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार कर सकता है।
(ii) पूर्वानुमान एवं नियंत्रण
मनोविज्ञान का दूसरा लक्ष्य व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करने से होता है ताकि उसे ठीक ढंग से नियंत्रित किया जा सके। जहाँ तक पूर्वकथन का सवाल है, इसमें सफलता, मापन (measurement) की सफलता पर निर्भर करता है। सामान्यताः मनोवैज्ञानिक व्यवहार के मापन के आधार पर ही यह पूर्वकथन करते हैं कि व्यक्ति अमुक परिस्थिति में क्या कर सकता है तथा कैसे कर सकता है? जैसे अगर हम किसी छात्र के सामान्य बौद्धिक स्तर का मापन करके उसके बारे में सही-सही जान लें तो हम स्कूल में उसके निष्पादन (performance) के बारे में पूर्वकथन आसानी से कर सकते हैं। जैसे व्यक्ति की अभिरुचि को मापकर मनोवैज्ञानिक यह पूर्वानुमान लगाते हैं कि व्यक्ति को किस तरह के कार्य (job) में लगाना उत्तम होगा ताकि उसे अधिक-से-अधिक सफलता प्राप्त हो सके। पूर्वकथन तथा नियंत्रण साथ-साथ चलता है और मनोवैज्ञानिक जब भी किसी व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करता है तो उसका उद्देश्य उस व्यवहार को नियंत्रित भी करना होता है।
(iii) व्याख्या
मनोविज्ञान का अंतिम लक्ष्य मानव व्यवहार की व्याख्या करना होता है। व्यवहार की व्याख्या करने के लिए मनोवैज्ञानिक कुछ सिद्धान्तों का निर्माण करते हैं ताकि उनकी व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से की जा सके। ऐसे सिद्धान्त ज्ञात स्त्रोतों से तथ्यों को संगठित करते हैं और मनोवैज्ञानिक को उस परिस्थिति में तर्कसंगत अनुमान लगाने में मदद करते हैं जहाँ वे सही उत्तर नहीं जान पाते हैं। मानव व्यवहार की व्याख्या करना मनोविज्ञान का सबसे अव्वल लक्ष्य हैं क्योंकि जब तक मनोवैज्ञानिक यह नहीं बतला पाते हैं कि व्यक्ति अमुक व्यवहार क्यों कर रहा है, अमुक मापन प्रविधि क्यों काम में ले रहा है तो वे सही ढंग से न तो उस व्यवहार के बारे में पूर्वकथन ही कर सकते हैं और न ही ठीक ढंग से नियंत्रण ही संभव है।
मनोविज्ञान की शाखाएं
मनोविज्ञान एक प्रगतिशील विज्ञान है। शैशवकाल में होते हुए भी इस विज्ञान ने प्रयोग के क्षेत्र में अद्वितीय उन्नति की है। मनोविज्ञान को दर्शन का अंग समझा जाता है और दर्शानिकों द्वारा ही यह विज्ञान पढ़ाया जाता था। आज देश देशांतर में मनोविज्ञान की बड़ी-बड़ी प्रयोगशालएं स्थापित हो चुकी है
और बाल मनोविज्ञान, पशु मनोविज्ञान, चिकित्सा मनोविज्ञान अर्थात मनोविज्ञान के अंग-अंग पर खोज या प्रयोग जारी है। कुछ ही वर्षों के समय में इस विज्ञान के अनेक विभाग हो चुके है और इन विभागों की भी अनेक शाखाएं उत्पन्न हो चुकी है। यों तो मनोविज्ञान की बहुत सी शाखाएं है किन्तु उनमें से मुख्य निम्नलिखित है:-
- सामान्य मनोविज्ञान।
- पशु मनोविज्ञान।
- तुलनात्मक मनोविज्ञान।
- वैयक्तिक मनोविज्ञान।
- सामाजिक मनोविज्ञान।
- मनोविज्ञान अथवा विश्लेषण मनोविज्ञान।
- असामान्य मनोविज्ञान।
- चिकित्सा मनोविज्ञान।
- बाल मनोविज्ञान।
- उद्योग मनोविज्ञान।
- वाणिज्य मनोविज्ञान।
- शिक्षा मनोविज्ञान।
मनोविज्ञान का इतिहास
मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दोनों प्रकार के व्यवहारों का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन है। 'मनोविज्ञान' शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों "साइके' तथा 'लॉगस' से हुई है। ग्रीक भाषा में 'साइके' शब्द का अर्थ है 'आत्मा' तथा 'लॉगस' का अर्थ है 'शास्त्र' या 'अध्ययन' । इस प्रकार पहले समय में मनोविज्ञान को आत्मा के अध्ययन' से सम्बद्ध विषय माना जाता है।
आधुनिक विद्याशाखा के रूप में मनोविज्ञान, जो पाश्चात्य विकास से एक बड़ी सीमा तक प्रभावित है, का इतिहास बहुत छोटा है। इसका उद्भव मनोवैज्ञानिक सार्थकता के प्रश्नों से संबद्ध प्राचीन दर्शनशास्त्र से हुआ है।
मनोविज्ञान के इतिहास को मूलतः दो भागों में बाँटा जा सकता है:-
- पूर्व वैज्ञानिक काल
- वैज्ञानिक काल
1. पूर्व वैज्ञानिक काल
पूर्व वैज्ञानिक काल की शुरुआत ग्रीक दार्शनिकों (Greek Philosophers) जैसे प्लेटो (Plato), अरस्तु (Aristotle), हिपोक्रेट्स (Hippocrates) आदि के अध्ययनों एवं विचारों से प्रारंभ होकर 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक विशेषकर 1878 तक माना जाता है। इस काल में हिपोक्रेट्स (Hippocrates) ने 400 B.C. में शरीर-गठन प्रकार का सिद्धान्त (Theory of Constitutional Types) दिया था। जिसका प्रभाव आने वाले मनोवैज्ञानिकों पर काफी पड़ा और शेल्डन (Sheldon) ने बाद में चलकर व्यक्तित्व के वर्गीकरण के एक विशेष सिद्धांत जिसे 'सोमैटोटाईप सिद्धांत' (Somatotype theory) कहा गया, का निर्माण हिपोक्रेट्स के ही विचारों से । प्रभावित होकर किये।
ग्रीक दार्शनिक जैसे अगस्टाईन (Augustine) तथा थोमस (Thomas) का विचार था कि मन (mind) तथा शरीर (body) दोनों दो चीजें हैं और इन दोनों में किसी प्रकार का संबंध नहीं होता है। परन्तु देकार्ते (Descartes), लिबनिज (Leibnitz) तथा स्पिनोजा (Spinoza) आदि ने बतलाया कि सचमुच में मन और शरीर दोनों ही एक-दूसरे से संबंधित हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
ग्रीक दार्शनिक जैसे देकार्ते (Descartes) का मत था कि प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से ही कुछ विशेष विचार (ideas) होते हैं। परन्तु अन्य दार्शनिक जैसे लॉक (Locke) का मत था कि व्यक्ति जन्म के समय 'टेबूला रासा' (tabularasa) होता है अर्थात् उसका मष्तिष्क एक कोरे कागज के समान होता है और बाद में उसमें नये-नये अनुभवों से नये-नये विचार उत्पन्न होते हैं। बाद में इस वाद-विवाद द्वारा एक नये संप्रत्यय का जन्म हुआ जिसे मूलप्रवृत्ति (instinct) की संज्ञा दी गयी है और ऐसा समझा जाने लगा कि प्रत्येक व्यवहार की व्याख्या इस मूलप्रवृत्ति के रूप में ही हो सकती है।
रूसो (Rousseau) जैसे दार्शनिकों का कहना था कि मनुष्य जन्म से अच्छे स्वभाव का होता है परन्तु समाज के कटु अनुभव उसके स्वभाव को बुरा बना देता है। दूसरी तरफ, स्पेन्सर (Spencer) जैसे दार्शनिक का मत था कि मनुष्य में जन्म से ही स्वार्थता (selfishness) आक्रमणशीलता (aggressiveness) आदि जैसे गुण मौजूद होते हैं जो समाज द्वारा नियंत्रित कर दिये जाते हैं। फलतः व्यक्ति का स्वभाव असामाजिक से सामाजिक हो जाता है।
19वीं शताब्दी के प्रारंभ में दो प्रमुख क्षेत्रों में जो अध्ययन किया गया उसका आधुनिक मनोविज्ञान पर सबसे गहरा असर पड़ा। पहला क्षेत्र दर्शनशास्त्र का था, जिसमें ब्रिटिश दार्शनिकों जैसे जेम्स मिल (James Mill) और जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S. Mill) का योगदान था जिसमें लोग चेतना (consciousness) तथा उसमें उत्पन्न विचारों (ideas) का अध्ययन करते थे तथा दूसरा क्षेत्र भौतिक (physical) तथा जैविक विज्ञान (biological sciences) का था जिसमें ज्ञानेन्द्रियों (sense organs) के कार्य के अध्ययन पर अधिक बल डाला गया। इस क्षेत्र में वेबर (Weber) एवं फेकनर (Fechner) आदि का योगदान अधिक महत्वपूर्ण था।
2. वैज्ञानिक काल
मनोविज्ञान का वैज्ञानिक काल (scientific period) 1879 से शुरु हुआ है। इसी वर्ष विलियम वुण्ट (Wilhelm Wunelt) ने जर्मनी के लिपजिंग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला खोली थी। वुण्ट सचेतन अनुभव (conscious experience) के अध्ययन में रुचि ले रहे थे और मन के अवयवों अथवा निर्माण की इकाइयों का विश्लेषण करना चाहते थे। वुण्ट के समय में मनोवैज्ञानिक अंतर्निरीक्षण (introspection) द्वारा मन की संरचना का विश्लेषण कर रहे थे इसलिए उन्हें संरचनावादी कहा गया। अंतर्निरीक्षण एक प्रक्रिया थी जिसमें प्रयोज्यों से मनोवैज्ञानिक प्रयोग में कहा गया था कि वे अपनी मानसिक प्रक्रियाओं अथवा अनुभवों का विस्तार से वर्णन करें। मनोविज्ञान का विकास विभिन्न स्कूल' (school) में कैसे हुआ और उन स्कूल पर बुन्ट के मनोविज्ञान का क्या प्रभाव पड़ा।
मनोविज्ञान के ऐसे पाँच प्रमुख स्कूल हैं जिनका वर्णन निम्नांकित है-
1. संरचनावाद (Structuralism)
संरचनावाद जिसे अन्य नामों जैसे अन्तर्निरीक्षणवाद (introspectionism) तथा अस्तित्ववाद से भी जाना जाता है। संरचनावाद स्कूल को विल्हेल्म वुण्ट के शिष्य टिचेनर (Titchener) द्वारा अमेरिका के कोर्नेल विश्वविद्यालय (Corucle University) में 1892 में प्रारंभ किया गया। संरचनावाद के अनुसार मनोविज्ञान की विषय-वस्तु चेतन अनुभूति (conscious experience) थी। टिचेनर ने चेतना (consciousness) तथा मन (mind) में अन्तर किया। चेतना से उनका तात्पर्य उन सभी अनुभवों (experiences) से था जो व्यक्ति में एक दिये हुए क्षण में उपस्थित होता है, जबकि मन से तात्पर्य उन सभी अनुभवों से होता है जो व्यक्ति में जन्म से ही मौजूद होते हैं। टिचेनर के अनुसार चेतना के तीन तत्व (elements) होते हैं - संवेदन (sensation), भाव या अनुराग (feeling or affection) तथा प्रतिमा या प्रतिबिम्ब (images)। टिचेनर ने अन्तर्निरीक्षण को मनोविज्ञान की प्रमुख विधि माना है।
2. प्रकार्यवाद या कार्यवाद (Functionalism)
प्रकार्यवाद की स्थापना अनौपचारिक ढंग से विलियम जेम्स (William James) ने 1890 में अपनी एक पुस्तक लिखकर जिसका शीर्षक 'प्रिंसिपल्स ऑफ साइकोलॉजी' (Principles of Psychology) कर दी थी। उनका मानना था कि मनोविज्ञान का संबंध इस बात से है कि चेतना क्यों और कैसे कार्य करते हैं (Why and how the consciousness functions?) न कि सिर्फ इस बात से है कि चेतना के कौन-कौन से तत्व हैं?अतः जेम्स के अनुसार मनोविज्ञान की विषय-वस्तु तो चेतना अवश्य थी, परन्तु उन्होंने इसमें चेतना की कार्यात्मक उपयोगिता (functional utility) पर अधिक बल डाला था।
प्रकार्यवाद की औपचारिक स्थापना के संस्थापक के रूप में डिवी (Dewey), एंजिल (Angell) तथा कार्र (Carr) को जाना जाता है। प्रकार्यवाद के अनुसार मनोविज्ञान का संबंध मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) या कार्य (functions) के अध्ययन से होता है न कि चेतना के तत्वों (elements) के अध्ययन से होता है।
3. व्यवहारवाद (Behaviourism)
व्यवहारवाद की संस्थापना वाटसन (Watson) द्वारा 1913 में की गई। उनका मानना था कि मनोविज्ञान एक वस्तुनिष्ठ (objective) तथा प्रयोगात्मक (experimental) मनोविज्ञान है। अतः इसकी विषय-वस्तु सिर्फ व्यवहार (behaviour) हो सकता है चेतना नहीं क्योंकि सिर्फ व्यवहार का ही अध्ययन वस्तुनिष्ठ एवं प्रयोगात्मक ढंग से किया जा सकता है। वाटसन के व्यवहारवाद ने उद्दीपक-अनुक्रिया (stimulus-response) को जन्म दिया। वाटसन ने अन्तर्निरीक्षण को मनोविज्ञान की विधि के रूप में अस्वीकृत किया और उन्होंने मनोविज्ञान की चार विधियाँ बताई, जैसे : प्रेक्षण (observation) अनुबन्धन (conditioning), परीक्षण (testing) और शाब्दिक रिपोर्ट (verbal report)|
4. गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt Psychology)
गेस्टाल्ट स्कूल की स्थापना मैक्स वरदाईमर (Max Wertheimer) ने 1912 में किया। कोहलर (Kohler) तथा कौफ्का (Koffka) इस स्कूल के सह-संस्थापक (cofounders) थे। 'Gestalt" एक जर्मन शब्द है जिसका हिन्दी में रुपान्तर 'आकृति' (form), आकार (shape) तथा 'समाकृति (configuration) किया गया है। गेस्टाल्ट स्कूल का मानना था कि मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं के संगठन (organization) का विज्ञान है।
5. मनोविश्लेषण (Psychoanalysis)
मनोविश्लेषण को एक स्कूल के रूप में सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) ने स्थापित किया। फ्रायड के अचेतन (unconscious) का सिद्धान्त काफी महत्वपूर्ण माना गया है और उन्होंने सभी तरह के असामान्य व्यवहारों (abnormal behaviour) का कारण इसी अचेतन में होते बतलाया। अचेतन के बारे में अध्ययन करने की अनेक विधियाँ बतलाई जिनमें मुक्त साहचर्य विधि (free association method), सम्मोहन (hypnosis) तथा स्वप्न की व्याख्या (dream interpretation) सम्मिलित हैं।
भारत में मनोविज्ञान का विकास
भारतीय दार्शनिक परम्परा इस बात में धनी रही है कि वह मानसिक प्रक्रियाओं तथा मानव चेतना, स्व, मन-शरीर के संबंध तथा अनेक मानसिक प्रकार्य; जैसे- संज्ञान, प्रत्यक्षण, भ्रम, अवधान तथा तर्कना आदि पर उनकी झलक के संबंध में केन्द्रित रही है। भारत में आधुनिक मनोविज्ञान के विकास को भारतीय परम्परा की गहरी दार्शनिक जड़े भी प्रभावित नहीं कर सकी हैं।
भारतीय मनोविज्ञान का आधुनिक काल कलकत्ता विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में 1915 में प्रारंभ हुआ जहाँ प्रायोगिक मनोविज्ञान का प्रथम पाठ्यक्रम आरंभ किया गया तथा प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित हुई। कलकत्ता विश्वविद्यालय ने 1916 में प्रथम मनोविज्ञान विभाग तथा 1938 में अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान का विभाग प्रारंभ किया। प्रोफेसर एन.एन. सेनगुप्ता, जो वुण्ट की प्रायोगिक परम्परा में अमेरिका में प्रशिक्षण प्राप्त थे, और उनसे बहुत प्रभावित थे। 1922 में प्रोफेसर गिरिन्द्र शेखर बोस मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष बने जो फ्रायड के मनोविश्लेषण में प्रशिक्षण प्राप्त थे।
प्रोफेसर बोस ने 'इंडियन साइकोएनालिटिक सोसाइटी' (Indian Psychoanalytic Society) की स्थापना 1922 में की थी। 1924 में 'इंडियन साइकोलॉजिकल एशोसिएशन' (Indian Psychological Association) की स्थापना की गई। 1938 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग में एक अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान (Applied Psychology) की शाखा भी खोली गई।
इसके पश्चात् मैसूर विश्वविद्यालय एवं पटना विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के अध्यापन एवं अनुसंधान के प्रारंभिक केन्द्र प्रारम्भ हुए। 1960 के दशक के दौरान भारत में कई विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान का विश्वविद्यालय विभाग (University Department) की स्थापना की गई। विश्वविद्यालय के प्रांगण से हटकर मनोविज्ञान विभिन्न तरह के संस्थानों जैसे प्रबंधन संस्थान, शिक्षा संस्थान, रक्षा सेवा आदि में भी काफी लोकप्रिय हुआ और भारतीय मनोवैज्ञानिकों की सक्रियता इसमें काफी अधिक रही है। 1986 में दुर्गानन्द सिन्हा ने अपनी पुस्तक 'साइकोलॉजी इन ए थर्ड वर्ल्ड कन्ट्री : दि इंडियन एक्सपीरियन्स' में भारत में सामाजिक विज्ञान के रूप में चार चरणों में आधुनिक मनोविज्ञान के इतिहास को खोजा है।
अतः भारत में मनोविज्ञान का अनुप्रयोग अनेक व्यावसायिक क्षेत्रों में किया जा रहा है।
मनोवैज्ञानिक उपकरण
मनोवैज्ञानिक अनुसन्धानों में प्रयोज्यों के विषय में प्रदत्त व सार्थक सूचनाओं को एकत्र करने के लिये कई प्रकार के उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। ये उपकरण, पेपर, यन्त्र या कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के रूप में होते हैं। इन उपकरणों के प्रशासन द्वारा मनोवैज्ञानिक को शाब्दिक, लिखित, व्यावहारिक या दैहिक प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होती है। पाठ के इस भाग में हम कछ ऐसे ही मनोवैज्ञानिक उपकरणों के विषय में चर्चा करेंगे, जिनका प्रयोग अनुसन्धानों को करते समय किया जाता है।
मनोवैज्ञानिक परीक्षण
आपने उन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के विषय में सुना होगा जो बुद्धि, अभिक्षमता तथा रुचि का मापन करते हैं। मनोवैज्ञानिक अनुसन्धानों में परीक्षणों का विकास एक महत्वर्ण कार्यक्षेत्र है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण व विकास, व्यक्तित्व, बुद्धि, अभिरुचि, मूल्य, उपलब्धि, अभिवृत्ति, स्मृति तथा अन्य कई मनोवैज्ञानिक गुणों का मूल्यांकन करने के लिये किया जाता है। उदाहरण के लिये बुद्धि के एक परीक्षण का विकास बुद्धि के सिद्धान्त पर आधारित होता है। इन परीक्षणों का कार्यान्वयन एक अकेले व्यक्ति पर या समूह पर किया जाता है। इन परीक्षणों पर एक व्यक्ति द्वारा प्राप्त अंकों की दूसरे व्यक्तियों द्वारा उन्हीं परीक्षणों पर प्राप्त अंकों से तुलना कर उसके स्तर का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण द्वारा एक व्यक्ति के विभिन्न गुणों व सीमाओं का एक वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जा सकता है। एक मानकीकृत परीक्षण में विश्वसनीयता व वैधता के गुण होते हैं। जिस प्रतिदर्श के लिये परीक्षण का निर्माण किया गया है, उससे प्राप्त परिणामों में यदि स्थिरता हो तब वह परीक्षण विश्वसनीय कहलाता है। उदाहरण के लिये अगर परीक्षण से किसी लक्षण का मूल्यांकन किया जा रहा हो तो उसके परिणाम अलग-अलग अवसरों पर कुल मिलाकर समान होने चाहिए। किसी परीक्षण की वैद्यता' का अर्थ यह है कि वह मूल्यांकन के लिये वांछित विशेषताओं का किस सीमा तक मापन करता है।
परीक्षण की प्रकृति व प्रशासन के आधार पर परीक्षण दो प्रकार का होता है, शाब्दिक या अशाब्दिक (निष्पादन) परीक्षण। शाब्दिक परीक्षण में प्रतिक्रियाएं मौखिक रूप से ली जाती हैं अशाब्दिक या निष्पादन परीक्षणों में प्रतिक्रियायें या तो लिखित रूप में या किसी कार्य या व्यवहार के रूप में ली जाती हैं। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को 'वस्तुपरक' तथा 'प्रक्षेपी' परीक्षणों के रूप में भी विभाजित किया जा सकता है। 'वस्तुपरक' परीक्षणों के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक रचना से सम्बन्धित प्रश्न व्यक्ति से प्रत्यक्ष रूप से पूछे जाते हैं। इन परीक्षणों में व्यक्ति को प्रतिक्रिया प्रदान करने की सीमित स्वतंत्रता होती है। एक 'प्रक्षेपी परीक्षण के अन्तर्गत संदिग्ध अनिश्चित तथा असंरक्षित उद्दीपकों, जैसे- चित्र, स्याही के धब्बे, रेखाचित्र तथा अपूर्ण वाक्यों आदि को व्यक्ति से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिय प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षणों में व्यक्ति अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए स्वतंत्र होता है।
इस प्रकार मनोवैज्ञानिक गुणों के मूल्यांकन के लिये कई प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। परीक्षणों द्वारा प्राप्त अंक इस बात की ओर संकेत करते हैं कि व्यक्ति में किस सीमा तक वह गुण विद्यमान है। ये अंक मनोवैज्ञानिक को प्रयोज्य के भविष्य की कार्य योजना बनाने में भी सहायता प्रदान करते हैं।
मनोविज्ञान एवं अन्य विषय
कोई भी विद्याशाखा, जो लोगों का अध्ययन करती है, वह निश्चित रूप से मनोविज्ञान के ज्ञान की सार्थकता को मानेगी। इसी प्रकार मनोवैज्ञानिक भी मानव व्यवहार को समझने में अन्य विद्याशाखाओं की सार्थकता को स्वीकारते हैं। अनुसंधानकर्ताओं एवं विज्ञान, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी में विद्वानों ने एक विद्याशाखा के रूप में मनोविज्ञान की सार्थकता के अनुभव किए। मस्तिष्क एवं व्यवहार का अध्ययन करने में मनोविज्ञान अपने ज्ञान को तंत्रिका विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, जीवविज्ञान, आयुर्विज्ञान तथा कम्प्यूटर विज्ञान के साथ बाँटता है। एक सामाजिक-सांस्कृतिक के संदर्भ में मानव व्यवहार को समझने के लिए (उसका अर्थ, संवृद्धि, तथा विकास) मनोविज्ञान अपने ज्ञान को मानव विज्ञान, समाजशास्त्र, समाजकार्य विज्ञान, राजनीति विज्ञान एवं अर्थशास्त्र के साथ भी मिलकर बाँटता है। यही कारण है कि मनोविज्ञान में अंतर्विषयक उपागम (interdisciplinary approach) का जन्म हुआ है जिसका सहर्ष स्वागत सभी मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
कुछ प्रमुख विद्याशाखाएँ जो मनोविज्ञान से जुड़ी हैं उनकी चर्चा नीचे की जा रही हैं :
दर्शनशास्त्र
कहा जाता है कि मनोविज्ञान की जनक दर्शनशास्त्र है। उन्नीसवीं सदी के अंत तक कुछ चीजें जो समसामयिक मनोविज्ञान से संबंधित है, जैसे मन का स्वरुप क्या है अथवा मनुष्य अपनी अभिप्रेरणाओं एवं संवेगों के विषय में कैसे जानता है, वे बातें दार्शनिकों की रुचि की थी। उन्नीसवीं सदी में आगे चलकर वुण्ट एवं अन्य मनोवैज्ञानिकों ने इन प्रश्नों के लिए प्रायोगिक उपागम का उपयोग किया तथा समसामयिक मनोविज्ञान का उदय हुआ। विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान के उदय के बाद भी यह दार्शनशास्त्र से बहुत कुछ लेता है, विशेषकर ज्ञान की विधि तथा मानव स्वभाव के विविध क्षेत्रों से संबंधित बातें।
अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान एवं समाजशास्त्र
सहभागी सामाजिक विज्ञान विद्याशाखाओं के रूप में इन तीनों ने मनोविज्ञान से बहुत कुछ प्राप्त किया है तथा उसको भी समृद्ध किया है। मनोविज्ञान ने उपभोक्ता व्यवहार (consumable behaviour) तथा बचत व्यवहार को समझने की उत्तम पृष्ठभूमि को तैयार किया है जिसका उपयोग कर अर्थशास्त्री इन क्षेत्रों में व्यक्ति के आर्थिक व्यवहार के बारे में उत्तम निर्णयन (decision) एवं नियंत्रण पर अधिक सफलता प्राप्त की है। आर्थिक व्यवहार में सहयोग एवं द्वन्द्व(conflicts) जैसे तत्वों की सराहनीय भूमिका थॉमस शेलिंग (Thomas Schelling) द्वारा की गयी। जिसके लिए उन्हें अर्थशास्त्र में 2005 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) भी प्रदान किया गया। अर्थशास्त्र की तरह, राजनीति विज्ञान भी मनोविज्ञान से बहुत कुछ ग्रहण करता है, विशेष रूप से शक्ति एवं प्रभुत्व के उपयोग, राजनैतिक द्वन्द्व के स्वरूप एवं उनके समाधान, तथा मतदान आचरण को समझने में। मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र एक दूसरे के साथ मिलकर विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भो में व्यक्तियों के व्यवहारों को समझने एवं उनकी व्याख्या को व्यक्त करते हैं।
आयुर्विज्ञान
मनोविज्ञान का संबंध आयुर्विज्ञान से भी है। आजकल बहुत से चिकित्सकों या मेडिकल अस्पताल में चिकित्सक रोगियों के उपचार के पहले या बाद मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता महसूस करते हैं। चिकित्सक कैंसर रोगियों, एडस रोगियों तथा बड़े-बड़े शल्यक्रिया करने के पहले तथा बाद में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों एवं मॉडलों का उपयोग करते हैं और इस कार्य के लिए वे स्थायी तौर पर परामर्श मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति भी करते हैं।
कम्प्यूटर विज्ञान
प्रारंभ से ही कम्प्यूटर मानव स्वभाव का अनुभव करने का प्रयास करता रहा है। कम्प्यूटर की संरचना, उसकी संगठित स्मृति, सूचनाओं के क्रमवार एवं साथ-साथ प्रक्रमण आदि में ये बातें देखी जा सकती हैं। कम्प्यूटर वैज्ञानिक तथा इंजीनियर केवल बुद्धिमान से बुद्धिमान कम्प्यूटर का निर्माण नहीं कर रहे हैं बल्कि ऐसी मशीनों को बना रहे हैं जो संवेद एवं अनुभूति को भी जान सकें। इन दोनों विद्याशाखाओं में हो रहे विकास संज्ञानात्मक विज्ञान के क्षेत्र में सार्थक योगदान कर रहे हैं।
विधि एवं अपराधशास्त्र
एक कुशल अधिवक्ता तथा अपराधशास्त्री को मनोविज्ञान के ज्ञान की जानकारी ऐसे प्रश्नों - कोई गवाह एक दुर्घटना, गली की लड़ाई अथवा हत्या जैसी घटना को कैसे याद रखता है? न्यायालय में गवाही देते समय वह इन तथ्यों का कितनी सत्यता के साथ उल्लेख करता है?झूठ एवं पश्चाताप के क्या विश्वसनीय लक्षण हैं? किसी आपराधिक कार्य के लिए दंड की किस सीमा को उपयुक्त माना जाए? मनोवैज्ञानिक ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते हैं। आजकल बहुत से मनोवैज्ञानिक ऐसी बातों पर अनुसंधान कार्य कर रहे हैं जिसके उत्तर देश में भावी विधि व्यवस्था की बड़ी सहायता करेंगे।
संगीत एवं ललित कला
प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक संचार-साधन हमारे जीवन में बहुत ही वृहत्तर स्तर पर प्रवेश कर चुके हैं। वे हमारे चिंतन, अभिवृत्तियों एवं संवेगों को बहुत बड़ी सीमा तक प्रभावित कर रहे हैं। यदि वे हमें निकट लाए हैं तो साथ ही साथ सांस्कृतिक असमानताएँ भी कम हुई हैं। मनोविज्ञान संचार को अच्छा एवं प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक युक्तियों के निर्माण में सहायता करता है। समाचार कहानियों को लिखते समय पत्रकारों को पाठकों की रुचियों को ध्यान रखना चाहिए। चूँकि अधिकांश कहानियाँ मानवीय घटनाओं से संबंधित होती हैं, अतः उनके अभिप्रेरकों एवं संवेगों का ज्ञान आवश्यक होता है।
वास्तुकला तथा अभियांत्रिकी
एक वास्तुकार हमेशा यह कोशिश करता है कि उसकी कोई भी संरचना ऐसी नहीं है जिससे व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक असंतुष्टि हो। वह इस बात की हमेशा कोशिश करता है कि उसकी संरचनाओं से व्यक्ति की अभिरुचि (interest), आदत (habit) तथा जिज्ञासा आदि की सम्पूर्ण तुष्टि हो। जहाँ अभियांत्रिकी (engineering) के क्षेत्र का प्रश्न है, इस पर भी मनोविज्ञान का काफी प्रभाव पड़ा है। अभियंता किसी भी मशीन के रूप तथा उसके कार्यरूप का निर्धारण करते समय मानवीय जरुरतों, आदतों एवं सुविधाओं का पूरा-पूरा ख्याल रखते हैं। अतः मनोविज्ञान इन दो विद्याशाखाओं के साथ भी पूरी तरह घुली मिली हुई है।
प्रमुख पद
संरचनावाद, अस्तित्ववाद, अर्न्तनिरीक्षण, प्रकार्यवाद, व्यवहारवाद, प्रेक्षण, अनुबन्धन, मनोविश्लेषण
महत्वपूर्ण बिन्दु
प्रस्तुत अध्याय मनोविज्ञान को व्यवहार को मनोविज्ञान मानते हुए उसकी परिभाषा, प्रकृति एवं लक्ष्यों को निरूपित करता है
वस्तुतः प्राणी के व्यवहार का अध्ययन लक्ष्योन्मुख होता है , इस हेतु मनोविज्ञान के लक्ष्य मापन एवं पूर्वानुमान एवं नियंत्रण तथा व्याख्या के रूप में प्रस्तुत किया है मनोविज्ञान का इतिहास, मनोविज्ञान के उद्गम जो कि पूर्व वैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक काल के रूप में व्याखित है।
मनोविज्ञान के विभिन्न सम्प्रदाय, संरचनावाद, गेस्टाल्टवाद एवं प्रकार्यवाद, मनोविश्लेषणवाद व्यवहारवाद को समझाया गया है।
भारत में मनोविज्ञान की उत्पति एवं विकास पर प्रकाश डाला गया है तथा मनोविज्ञान का विभिन्न विषयों से सम्बन्ध एक रीढ़ की हड्डी के रूप में प्रस्तुत किया है क्योंकि जहाँ इन्सान है, वहीं विकास सम्भव है इसीलिए इसे जैव सामाजिक विज्ञान (Bio-social science) कहा गया है।
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