रेडियो विज्ञापन
रेडियो पर तीन शैलियों के विज्ञापन पाए जाते हैं: जिंगल, सामाजिक विज्ञापन व उद्घोषणा। जिंगल किस्म के रेडियो विज्ञापन में गीत व संगीत को प्राधान्य दिया जाता है। इस प्रकार के विज्ञापन रेडियो पर सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। एक निजी व अन्तरंग माध्यम होने के नाते रेडियो पर काफी संख्या में सामाजिक विज्ञापन भी आते हैं। रेडियो केन्द्र व चैनलों पर आने वाले विभिन्न कार्यक्रम सम्बन्धित व अन्य सूचनाएं उद्घोषणा शैली के विज्ञापन के जरिए श्रोताओं तक पहुंचाए जाते हैं।
तकनीकी रूप से देखा जाए तो रेडियो पर दो प्रकार के विज्ञापन होते हैं: लाइव व रिकॉर्डिड। रेडियो पर आने वाले लाइव विज्ञापन प्रायः उद्घोषणा शैली के होते हैं। अन्य प्रकार के विज्ञापन पहले रिकॉर्ड किए जाते हैं तथा बाद में प्रसारित किए जाते हैं।
रिकॉर्डिड या जिंगल शैली के रेडियो विज्ञापनों में शाब्दिक सामग्रियों के साथ-साथ गीत-संगीत तथा ध्वनि प्रभावों का भी भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। जाहिर है रेडियो विज्ञापनों में संदेश सम्प्रेषण का कार्य शब्द सामग्री के जरिए ही किया जाता है। किन्तु इस सम्प्रेषण में सहजता, सरलता व प्रभावशीलता के सन्दर्भ एक निश्चित माहौल बनाने हेतू गीत-संगीत व विभिन्न ध्वनि प्रभावों का इस्तेमाल किया जाता है।
रेडियो विज्ञापनों में आवश्यकता के अनुसार कई प्रकार की संगीत विधाओं का प्रयोग किया जाता है। साथ ही इन विज्ञापनो में कई ध्वनि प्रभावों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके उदाहरण हैं: पानी छपकाने की आवाज, मोटर बोट की आवाज, ताली बजाने की आवाज, हँसने की आवाज, दरवाजा खटखटाने की आवाज, दरवाजे पर घण्टी की आवाज, घोडों के टापों की आवाज, रोने की आवाज, बाइक की आवाज, चिल्लाने-चीखने की आवाज, खाना बनाते समय तडके की आवाज आदि। इस प्रकार के ध्वनि प्रभावों के साथ संगीत रेडियो विज्ञापनों के संदेशों को जीवंत, आकर्षक व मोहक बना देता है। ऐसे में इन संदेशों को ग्रहण करना आसान हो जाता है।
रेडियो विज्ञापनों में अधिक प्रभावशाली बनाने में मदद करने वाला अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व है: आवाज की विविधताएं। ऊंची-नीची या मध्मय आवाजें, धीमी, मध्यम या तेज गति की आवाजें, उच्चारण में विविधताएं तथा आवाज की अन्य विविधताएं रेडियो विज्ञापन के संदेश को सजीव बना देते हैं।
रेडियो एक निजी व अन्तरंग माध्यम है। वैसे प्रायः लोग रेडियो सुनते समय कोई न कोई अन्य काम कर रहे होते हैं। किन्तु थोडा-सा सही, उनका ध्यान रेडियो सुनने में भी होता है। रेडियो विज्ञापन निर्माताओं के ऊपर यह बात निर्भर करती है कि वे इस अन्तरंगता का किस हद तक फायदा उठाते हैं।
रेडियो में भौगोलिक पहुंच के सन्दर्भ में नियन्त्रण होता है। साथ ही प्रायः रेडियो कार्यक्रम एक निश्चित आयु वर्ग व रूचि के श्रोताओं के लिए होते हैं तथा रेडियो विज्ञापन निर्माता इस बात का भी ख्याल रखते हैं।
रेडियो विज्ञापन हेतू लिखते समय इस माध्यम का स्वतन्त्र व अनोखा श्रव्य प्रभाव को ध्यान में रखा जाना चाहिए। क्योंकि रेडियो पर विज्ञापन संदेश केवल सुना जा सकता है, इसीलिए रेडियो हेतू लेखन उसी अनुसार करना चाहिए। शाब्दिक सामग्री का चयन करते समय उसकी प्रस्तुति में प्रयोग में लाए जाने वाले आवाज की विविधता, ध्वनि प्रभाव व संगीत के बारे में भी सोचने की जरूरत है। तभी रेडियो विज्ञापन से संदेश में सम्पूर्णता लाई जा सकती है।
रेडियो विज्ञापनों में दृश्य या चित्र सामग्री की कोई गुंजाईश नहीं होती। इसी कारण रेडियो विज्ञापन लिखते समय वर्णनात्मक व वार्तालापी शैलियों का प्रयोग किया जाता है। साथ ही रेडियो विज्ञापनों में नाटकीय लेखन शैली का भी अधिक प्रयोग किया जाता है।
रेडियो टेलिविजन की भांति एक प्रमुख माध्यम नहीं है। टेलिविजन देखने की प्रक्रिया की तुलना में रेडियो सुनने में अधिक ध्यान नहीं चाहिए होता। रेडियो प्रायतः एक पृष्ठभूमि माध्यम है। रेडियो सुनते समय खासकर, रेडियो विज्ञापन सुनते समय श्रोता विशेष ध्यान नहीं देते। इसी कारण रेडियो विज्ञापन निर्माताओं को विज्ञापन के जरिए पहले श्रोताओं का विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करना होता है तथा उसके उपरान्त ही विज्ञापन संदेश देना होता है। इस सन्दर्भ में रेडियो विज्ञापन को एक प्रकार से घुसपैठिए जैसा काम करना पडता है। भिन्न-भिन्न ध्वनि तथा सांगीतिक विविधताओं को अकस्मात्, अचानक व आकर्षक तरीके से प्रस्तुत कर रेडियो विज्ञापनों के श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया जाता है।
विभिन्न प्रकार की ध्वनियां, आवाज सम्बन्धित विविधताएं व सांगीतिक विशेषताओं के अलावा रेडियो विज्ञापन में प्रयोग में लाए जाने वाले ध्यानाकर्षक तत्त्व हैं-
- विज्ञापित वस्तु सम्बन्धित ध्वनियां
- रोचक वार्तालाप
- प्रत्यक्ष उद्घोषणा
- वस्तु सम्बन्धित प्रतीकात्मक आवाजें
- अति परिचित आवाजें
- आवाज की गति में विविधता
- लोकप्रिय धुनें
रेडियो विज्ञापन हेतू लेखन
रेडियो विज्ञापन हेतू लिखते समय कुछ पहलूओं का ध्यान रखा जाना जरूरी है। इन पहलूओं में प्रमुख हैं-
- श्रोताओं का ध्यान आकर्षण
- श्रोताओं में लगाव बनाना
- बिक्री शक्ति युक्त शब्दों का चयन
- विश्वसनीयता बनाना व बरकरार रखना
- आवाजें, ध्वनि व संगीत की शैलियों के साथ तालमेल बनाना
- विज्ञापन के अन्त में श्रोताओं से दोबारा नाता बनाना
रेडियो एक पृष्ठभूमि माध्यम है। इसी कारण विज्ञापन बनाते समय श्रोताओं का ध्यानाकर्षण कर पाना जरूरी होता है। अनोखी ध्वनि व आवाज व संगीत सम्बन्धित प्रभावों से यह कार्य किया जाता है। अकस्मात् ब्रेक लगाने पर टायरों के घिसने की आवाज, ढोल या ड्रम की आवाज, पटाखों की आवाज, प्रैशर कुकर की सीटी की आवाज, फुसफुसाने की आवाज से लेकर कभी-कभी निरखता को भी इस कार्य हेतू प्रयोग में लाया जाता है। इस प्रकार के ध्वनि प्रभावों का इस्तेमाल करते समय इनकी ध्यान आकर्षण करने की शक्ति के साथ-साथ प्रयोग में लाए जाने वाले ध्वनि व प्रभावों की संगतता या रिलेवैन्स का भी ध्यान रखना जरूरी है। इनमें से कुछ प्रभाव ध्यान आकर्षण करने के साथ-साथ विज्ञापन संदेश सम्प्रेषण हेतू एक सहज, सरल व रोचक माहौल बनाने का कार्य भी करते हैं।
श्रोताओं का ध्यान आकर्षण करने के बाद विज्ञापन में उनकी रूचि बनाने के साथ-साथ विज्ञापित वस्तु के साथ श्रोताओं का नाता बनाना भी एक आवश्यक चरण है। नाता बनाने हेतू अधिकांश विज्ञापनों में एक निजी शैली का प्रयोग किया जाता है। इस सन्दर्भ में कई रेडियो विज्ञापनों में वार्तालापी शैली का भी इस्तेमाल किया जाता है। प्रायः विज्ञापनों में लक्षित उपभोक्ता वर्ग की एक निश्चित परेशानी की बात करते हुए विज्ञापित वस्तु को उस परेशानी के हल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विज्ञापित वस्तु व लक्षित उपभोक्ता वर्ग में नाता बनाने के लिए सरलता के साथ-साथ ऐसे तत्त्व या स्थितियों का भी इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें श्रोता आसानी से याद रख सकें।
रेडियो विज्ञापन प्रायः आवाज व ध्वनि विविधताओं के साथ-साथ संगीत बहुल भी होते हैं। किन्तु रेडियो विज्ञापनों में प्रमुख सम्प्रेषणीय साधन शब्द ही होते हैं। रेडियो विज्ञापन में प्रयुक्त प्रत्यक्ष शब्दों का चयन ध्यानपूर्वक करने की आवश्कता है। इसी सन्दर्भ में शब्दों का चयन उनकी सरलता, परिचितता, स्पष्टता तथा बिक्री शक्ति के आधार पर किया जाता है। साथ ही यह ख्याल रखा जाता है कि विज्ञापन में प्रयुक्त शब्दों को आसानी से समझा जाए, आसानी से याद रखा जाए तथा आसानी से वह बार-बार दोहराया जाए। विज्ञापन में प्रयुक्त शब्दों का संयोजन उन शब्दों की सम्प्रेषण क्षमता व बिक्री शक्ति का ध्यान रखते हुए किया जाता है।
विज्ञापन अलग-अलग समय आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग भूमिका निभाता है। खासकर रेडियो विज्ञापन कभी मित्र या जानकार के रूप में आता है तो कभी विशेषज्ञ या दिशा-निर्देशक की भूमिका निभाता है। टेलिविजन विज्ञापनों में इस प्रकार के व्यक्तित्त्वों को दिखाना आसान है। किन्तु रेडियो में केवल मात्र आवाज विविधता व आवाजों की गुणवत्ता के जरिए विभिन्न व्यक्तियों का अहसास मात्र दिया जा सकता है। आवाजों के साथ-साथ रेडियो विज्ञापनों में विभिन्न प्रकार के मूड या माहौल बनाने हेतू विभिन्न प्रकार के ध्वनि प्रभावों का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही यह विभिन्न ध्वनि प्रभाव विज्ञापित वस्तु के संदर्भ में निश्चित प्रतीकात्मक छवि बनाते हुए उन वस्तुओं के लिए सकारात्मक पहचान बनाने का काम करते हैं। रेडियो जिंगलों में प्रयुक्त संगीत शैलियां भी विज्ञापन संदेश को आसानी से यादगार बनाते हुए श्रोताओं को विज्ञापन जिंगलों को बार-बार दोहराने पर मजबूर करते हैं।
किसी भी प्रकार के विज्ञापन में विश्वसनीयता एक अति आवश्यक तत्त्व है। इसी कारण विज्ञापनों में तथ्यों के साथ-साथ विज्ञापित वस्तु के संदर्भ में किए गए वायदों के लिए प्रमाण व पुष्टि भी प्रस्तुत किये जाते हैं। इस संदर्भ में उपभोक्ताओं की आपबीती या टेस्टीमोनियाल एक बहुप्रचलित साधन है। साथ ही विज्ञापनों में विशेषज्ञों का इस्तेमाल, शोध परिणामों का उद्धरण आदि किया जाता है। पसंद न आने पर पैसा वापस या मनी-बैक स्कीम भी इसी संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है।
रेडियो को आमतौर पर निष्क्रिय माध्यम माना जाता है। टेलिविजन विज्ञापनों की तुलना में रेडियो विज्ञापनों में क्रियाशीलता अधिक मात्रा में नहीं पाई जाती। इसी कारण रेडियो विज्ञापनों में गतिशीलता लाने की जरूरत होती है। यह कार्य शाब्दिक सामग्री, संगीत व ध्वनि प्रभावों के जरिए किया जाता है। साथ ही रेडियो विज्ञापन का अन्त भाग में एक बिक्री आवाहन किया जाता है।
रेडियो विज्ञापनों में प्रायतः सहज व सरल भाषा व शैलियों का प्रयोग किया जाता है। सहजता व सरलता लाने हेतू रेडियो विज्ञापनों में अति प्रचलित शब्द व सहज संयोजन शैलियों का भी प्रयोग किया जाता है। तात्कालीकता का आभास देने के लिए विज्ञापनों में वर्तमान काल का प्रयोग किया जाता है। जटिल संयोजन व वाक्य संरचना, तकनीकी शब्दावली तथा अति साहित्यिक या कठिन शैलियों का प्रयोग विज्ञापन संदेश के सम्प्रेषण में अवरोधक साबित होता है। रेडियो विज्ञापन में संदेश की स्पष्टता हेतू इस प्रकार के प्रयोगों से दूर रहा जाता है।
रेडियो विज्ञापनों में एक प्रमुख पहलू हैः चित्रकल्प। यह वह शब्द है जिसे सुनते ही श्रोताओं के मन में सुनिश्चित व स्पष्ट छवियां बन जाती हैं। ऐसे शब्द विज्ञापन संदेशों को स्पष्ट, सम्पूर्ण व ठोस बनाते हैं।
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