ऊर्जा प्रबंधन क्या है? मुद्दे और चुनौतियाँ | Energy Management in Hindi

ऊर्जा प्रबंधन

ऊर्जा प्रबंधन का आशय उस व्यवस्था से है जिससे देश में उपलब्ध ऊर्जा तथा ऊर्जा की मांग के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। देश में परंपरागत ऊर्जा संसाधन सीमित हैं तथा गैर परम्परागत ऊर्जा के लिये तकनीक का विकास अभी उतना नहीं हो पाया है, जितना होना चाहिये। देश में ऊर्जा की मांग दिनों-दिन बढ़ रही है।
Energy Management in Hindi
अतः हमें चाहिये की ऊर्जा का समुचित प्रबंधन करके इसकी पहुँच सभी तक सुनिश्चित किया जाए। ऊर्जा प्रबंधन हमारी जीविका तथा आने वाली पीढ़ी की जीविका के लिए अति आवश्यक है।

मुद्दे और चुनौतियाँ


जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि तथा लोगों की आय बढ़ने के कारण ऊर्जा की मांग बढ़ी है, विशेषकर परंपरागत ऊर्जा स्रोत की मांग। भारत में ऊर्जा की खपत लगभग 12 प्रतिशत से अधिक प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है।
ऊर्जा की कमी के कारण घरों में बिजली आपूर्ति की कमी तथा कारखानों का बंद होना आदि समस्याएँ सामान्य बात हो गई हैं, परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन एवं औद्योगिक उत्पादन घट गया है।

कोयले से संबंधित समस्याएं
भारत में कोयले के भंडार का वितरण भी असामान्य है, जिससे उसका परिवहन खर्च काफी अधिक है जिससे बिजली महंगी हो जाती है।
ऊर्जा के क्षेत्र का प्रबंधन तथा बिजली घरों की कम दक्षता, मजदूरों की समस्या, बिजली की चोरी के साथ बिजली की बर्बादी ने भी देश में ऊर्जा की समस्या को अधिक गहरा कर दिया है।
कोयला मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार सत्तर के दशक की शुरूआत में (कोयले की खदानों के राष्ट्रीयकरण के समय) उत्पादित होने वाला 7 करोड़ टन कोयला, 2016-17 में बढ़कर 66.279 करोड़ टन हो गया है।
उच्च मांग और खराब औसत गुणवत्ता के कारण, भारत अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कोयले का आयात करने को मजबूर है, जिससे भुगतान संतुलन की समस्या उत्पन्न होती है।
कोयला क्षेत्र को घरेलू चुनौतियों के साथ ही आयात के मार्चे पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जहाँ घरेलू उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है, वही आयात मूलभूत सुविधाओं और लागत संबंधी बाधाओं का सामना कर रहा है। वर्ष 2016-17 में भारत का कोयला आयात 19.1 करोड़ टन था।

तेल और गैस आयात से संबंधित समस्याएँ
गैस आयात की मात्रा भारत में तेजी से बढ़ रही है, वह भी तब जबकि लाभप्रद के जी-डी 6 बेसिन से उत्पादन बढ़ता दिखाई दे रहा है। हमारे कच्चे तेल आयात के देयक भी बढ़ते ही चले जा रहे हैं।
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) के दौरान, कच्चे तेल पर आयात निर्भरता वित्तीय वर्ष 2011 में न्यूनाधिक 76 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2017 में न्यूनाधिक 80 प्रतिशत हो जाने की अपेक्षा है और प्राकृतिक गैस पर आयात निर्भरता वित्तीय वर्ष 2011 में न्यूनाधिक 21 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2017 में 35 प्रतिशत तक हो जाने की अपेक्षा है।
दुनिया में प्राकृतिक गैस ऊर्जा का व्यवहार्य स्रोत रही है। प्राकृतिक गैस प्रदाताओं के समक्ष फिलहाल सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है- उसे स्टोर करना तथा एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना।
इसके अलावा भारत को समुद्री मार्गों से चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है।

घरेलू क्षमताओं का अपूर्ण दोहन
भारत विश्व की जनसंख्या के लगभग 17% भाग के प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन देश का ज्ञात हाइड्रोकार्बन का संरक्षित भंडार कुल वैश्विक भंडार का महज 0.6 प्रतिशत है। वहीं भारत की ऊर्जा खपत वैश्विक खपत की एक चौथाई है।
साथ ही देश की घरेलू क्षमताओं का पूर्णतया उपयोग नहीं किया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप, देश की तलछटी घाटियों का लगभग 80% भाग का या तो अवशोषण कम हुआ है या नहीं हुआ है।
देश का ध्यान पहले कोयला फिर तेल पर और उसके बाद नाभिकीय ऊर्जा के विकास पर केंद्रित था तथा अब गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर है। इसका परिणाम यह हुआ कि अलग-अलग क्षेत्रों में किया गया विकास कभी भी संगत एवं व्यापक नहीं रहा।
फिक्की के एक शोध के अनुसार भारत की खनन कुशलता, अमेरिका की खनन कुशलता का केवल दसवाँ हिस्सा है इसका प्रमुख कारण यह है कि 55000 करोड़ रूपए की आरक्षित नकद समृद्धि के बावजूद कोल इंडिया लिमिटेड इस क्षेत्र में विशेषज्ञों को लाने या प्रौद्योगिकी सुधार पर निवेश नहीं कर रही है।

मांग आपूर्ति अंतर
ऊर्जा क्षेत्र को फिलहाल आवंटित किए गए संसाधन, मोंग और आपूर्ति का अंतर कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसके परिणामस्वरूप आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। आगे चलकर मांग-आपूर्ति की यह खाई और अधिक गहराएगी।
भारत बिजली ऊर्जा संकट के दौर से गुजर रहा है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार देश में मांग के सापेक्ष 11000 मेगावाट से भी ज्यादा बिजली की कमी है। देश के कई तापीय बिजली घरों को पर्याप्त कोयला नहीं मिल पा रहा है।
साथ ही देश की कई राज्यों में किसानों को इतनी कम बिजली मिलती है कि किसानों ने कनेक्शन कटवाना बेहतर समझा।
कई राज्यों में किसान खेती के लिये डीजल पंपसेट, ट्रैक्टरों से चलने वाले पंप, हार्वेस्टर मशीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। नदियों की सफाई के लिये अरबों रूपए से बने सैंकड़ों सीवेज ट्रीटमेंट प्लॉट भी बंद करने पड़ रहे हैं।
वस्तुतः विश्व ऊर्जा परिदृश्य 2012 के अनुसार 2035 तक की अवधि में चीन, भारत और मध्य पूर्व में 60 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वैश्विक ऊर्जा मांग में एक तिहाई वृद्धि होने की संभावना है।
इसे भी न भूलें कि चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बाद भारत चौथा सबसे बड़ा प्राथमिक ऊर्जा उपभोक्ता है। इसके अलावा कुल वैश्विक वार्षिक ऊर्जा खपत में इसका हिस्सा 4.6 प्रतिशत से अधिक है।
यदि भारत को आने वाले वर्षों में लगभग 8 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर बनाए रखना है तो इसके ऊर्जा संसाधनों को निरंतर दबाव सहना होगा।

स्वच्छ एवं सस्ती प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराना
भारत एक दुर्जेय चुनौती का सामना कर रहा है, क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले एक बड़े वर्ग के लिये खाना पकाने के ईंधन को स्थानापन्न करने के लिये ऊर्जा के एक स्वच्छ एवं सस्ते स्रोत की तलाश में है।
ऊर्जा के स्रोतों की खोज और दोहन के लिये प्रभावी प्रौद्योगिकी की जरूरत है, इसलिये इन स्रोतों का दोहन करने के लिये उपयुक्त प्रौद्योगिकी खोजने में और अधिक शोध आवश्यक है, जो हमारे पर्यावरण के लिये अनुकूल होगा।

नीतिगत और नियामक बाधाएँ
हाइड्रोकार्बन और कोयला क्षेत्र में मूल्य निर्धारण गहरी चिंता का विषय है, क्योंकि घरेलू कीमतें अक्सर वैश्विक रूझानों से असंबद्ध होती हैं।
नियामक अनिश्चितताएँ अक्सर तेल और गैस क्षेत्र में निवेश राह में बाधा बनती हैं।
यह तभी और बेहतर तरीके से काम करेगा जबकि कोई स्वतंत्र नियामक संविदा प्रशासन, निगरानी और समीक्षा को संभाले, वर्तमान में सरकार इनके कार्यों में शामिल है। नीतियों के मामले में डाउनस्ट्रीम क्षेत्र अब उभर रहा है।
अन्य मामले जो भारत में ऊर्जा क्षेत्र को त्रस्त कर रहे हैं, वह भूमि अधिग्रहण में विलंब, पुनर्स्थापना और पुनर्वास तथा पर्यावरण एवं वन विभागों से मंजूरी प्राप्त करना है।

निम्नलिखित कदम उठाकर हम ऊर्जा का प्रबंधन कर सकते हैं तथा सभी लोगों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित कर सकते हैं-
  • रिहायशी आवास के लिये या फिर वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये जो भी नई सोसायटियां आ रही हैं, उनमें अनिवार्य रूप से सौर हीटिंग सिस्टम होना चाहिये तथा हीटिंग की आवश्यकता न होने पर उन्हीं सौर पैनलों को प्रकाश व्यवस्था हेतु बिजली बनाने हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है। आरंभ में ऐसा बैकअप के रूप में किया जा सकता है।
  • शहरों में सभी स्ट्रीट लाईटें सौर ऊर्जा से जलनी चाहिये, भले ही शुरूआत में यह थोड़ा महंगा हो सकता है। इसके जरिए हम पारंपरिक साधनों द्वारा उत्पन्न की गई काफी बिजली बचा सकते हैं। जैसे-ग्रीन बिल्डिंग।
  • सरकार को सरकारी सेक्टर के साथ-साथ निजी सेक्टर के लिये भी इसी प्रकार के निर्माण को प्रोत्साहन देना चाहिये।
  • सरकार को कुछ पहल करने की जरूरत है, जैसे- घरेलू ऊर्जा क्षेत्र क्षमताओं को बढ़ाने तथा भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के साथ तेल, गैस, कोयला, लीथियम, जलविद्युत, परमाणु और पवन, जैव ईंधन, इलेक्ट्रिक वाहन और अन्य नवीकरणीय स्रोतों जैसे सभी ऊर्जा संसाधनों के लिये स्वतंत्र रूप से एक ऊर्जा सुरक्षा योजना बनाई जानी चाहिये।
  • भारत की संस्थापित ऊर्जा क्षमता का एक बड़ा हिस्सा सरकारी नियंत्रण में है और केवल एक छोटा सा हिस्सा ही निजी सेक्टर के स्वामित्व में है। अतः निजी सेक्टर की हिस्सेदारी को और बढ़ाना चाहिये। अतः मूल्य निर्धारण में निजी क्षेत्र की अधिक से अधिक भागीदारी होने देना तथा सरकार के नियंत्रण को कम करना।

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